शादी खत्म करने के लिए सीधे शीर्ष अदालत नहीं आ सकती पार्टियां !

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संविधान पीठ ने कहा कि शादी खत्म करने के लिए कोई भी पक्ष अनुच्छेद-32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर नहीं कर सकता।

शीर्ष अदालत के एक फैसले का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि उसमें ठीक ही कहा गया है कि अगर कोई पक्ष सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट आता है तो उसकी याचिका स्वीकार नहीं की जानी चाहिए। विधायिका और अदालतें वैवाहिक मुकदमों को विशेष श्रेणी के रूप में देखती हैं। परिवार और वैवाहिक मामलों से निपटने वाले विधानों में अंतर्निहित सार्वजनिक नीति आपसी समझौते को प्रोत्साहित करने के लिए है। 

पीठ ने कहा है कि तलाक के लिए निचली अदालत की जो प्रक्रिया है, उसका पालन करना पड़ेगा। अगर निचली अदालत के किसी आदेश के चलते समस्या आ रही हो, तो पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा सकती है। अगर सुप्रीम कोर्ट को लगेगा कि मामले को लंबा खींचने की बजाए तलाक का आदेश दे देना सही है, तभी वह ऐसा आदेश देगा।

हिंदू विवाह में अब सहमति से तलाक लेने के लिए छह माह तक इंतजार करने की अनिवार्यता नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने अहम फैसला देते हुए कहा कि अगर पति-पत्नी के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बचती है, तो वह अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए किसी भी शादी को खत्म कर सकता है। अभी तक ऐसे मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत छह माह की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य थी। पीठ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशेष शक्ति का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है।

तलाक के अधिकार का बहुत ही सोच-विचार कर इस्तेमाल किया जाना चाहिए
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि वैवाहिक संबंध बचने की कोई उम्मीद न होने पर शीर्ष अदालत की ओर से तलाक देना अधिकार का मामला नहीं, बल्कि विवेक का विषय है। दोनों पक्षों के लिए ‘पूर्ण न्याय’ सुनिश्चित करने के मकसद से कई कारकों को ध्यान में रखते हुए इस अधिकार का बहुत ही सोच-विचार कर और सावधानी की से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

आपसी सहमति से तलाक के लिए भी इंतजार करना जरूरी है

यह थी याचिका: सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दर्ज कर कहा गया था-

  • क्या आपसी सहमति से तलाक के लिए भी इंतजार करना जरूरी है?
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (बी) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए जरूरी प्रतीक्षा अवधि (कूलिंग पीरियड) में छूट दी जा सकती है या नहीं? शीर्ष अदालत ने इस मामले में पिछले साल 29 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

यह है हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 (बी)

उपधारा (1): पति-पत्नी एक साल से अधिक समय से अलग रह रहे हों या वे साथ नहीं रह सकते या आपसी सहमति से शादी खत्म करना चाहते हैं, तो जिला अदालत में तलाक की याचिका दे सकते हैं।

उपधारा (2): दोनों पक्षों को 6 से 18 महीने तक का इंतजार करना होगा। यह अवधि इसलिए दी जाती है कि पति-पत्नी को सुलह का मौका मिल सके। कम से कम छह माह में भी सुलह का कोई रास्ता नहीं निकलता है तो तलाक हो जाता है।

विशेष रिपोर्ट-

दिनेश कुमार जैन
‘नेशनल कॉरस्पॉडेंट’ -ELE India News

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