गुजरात सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला इसलिए किया था, क्योंकि उन्होंने 14 साल या उससे अधिक समय तक जेल में रहते हुए अच्छा व्यवहार किया। इस मामले पर केंद्र की भी सहमति ली गई थी। कैदियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर एक हलफनामे में राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि सीबीआई की विशेष अपराध शाखा (मुंबई) के पुलिस अधीक्षक और सीबीआई के विशेष सिविल न्यायाधीश और सेशन कोर्ट (ग्रेटर बॉम्बे) ने पिछले साल मार्च में कैदियों की जल्द रिहाई का विरोध किया था।
गोधरा उप-जेल के अधीक्षक को लिखे पत्र में सीबीआई अधिकारी ने कहा था कि किया गया अपराध जघन्य और गंभीर था और इसलिए उन्हें समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है और उनके लिए कोई उदारता नहीं दिखाई जा सकती है।
सिविल जज ने कहा था, ”इस मामले में सभी दोषी अभियुक्तों को निर्दोष लोगों के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी पाया गया था। आरोपी का कोई दुश्मन या पीड़िता से कोई संबंध नहीं था। अपराध केवल इस आधार पर किया गया था कि पीड़ित एक विशेष धर्म से है। इस मामले में नाबालिग बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। यह मानवता के खिलाफ अपराध का सबसे खराब रूप है। यह समाज की चेतना को प्रभावित करता है।”
13 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी की याचिका पर फैसला करते हुए कहा था कि समय से पहले रिहाई के लिए उसकी प्रार्थना पर फैसला करने का अधिकार गुजरात सरकार के पास है, क्योंकि उसी राज्य में यह घटना हुई थी।
गुजरात सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि 1992 की नीति के अनुसार, जेल के महानिरीक्षक को एक दोषी की जल्द रिहाई के लिए जिला पुलिस अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट, जेल अधीक्षक और सलाहकार बोर्ड समिति की राय प्राप्त करना अनिवार्य है। इसके बाद जेल के महानिरीक्षक को नॉमिनल रोल की कॉपी और फैसले की कॉपी के साथ अपनी राय देने और सरकार को सिफारिश भेजने के लिए बाध्य किया जाता है।
गुजरात सरकार ने कहा कि उसने कई अधिकारियों की राय मांगी थी। उनमें सीबीआई की विशेष अपराध शाखा (मुंबई) के पुलिस अधीक्षक, विशेष सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट (ग्रेटर बॉम्बे), दाहोद के पुलिस अधीक्षक, दाहोद के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट, गोधरा उपकारा के जेल अधीक्षक, जेल सलाहकार समिति और अतिरिक्त महानिदेशक कारागार (अहमदाबाद) शामिल हैं। दो को छोड़कर अन्य सभी ने उनकी रिहाई की सिफारिश की है।
मामले की जांच एक केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई थी। राज्य ने केंद्र के सामने भी अपनी सिफारिश प्रस्तुत की। केंद्र ने भी 11 जुलाई 2022 को पत्र के माध्यम से 11 कैदियों की समय से पहले रिहाई के लिए अपनी सहमति से अवगत कराया।
गुजरात सरकार ने कहा, “सभी रायों पर विचार किया और 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया गया। इन सभी कैदियों ने जेलों में 14 साल या उससे उससे अधिक उम्र पूरी कर ली है। इस दौरान उनका व्यवहार अच्छा पाया गया।”
आपको बता दें कि गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में 3 मार्च 2002 को भीड़ द्वारा बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उस समय बिलकिस गर्भवती थी। गुजरात सरकार ने 15 अगस्त को इस मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया, जिन्हें 2008 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जेल सलाहकार समिति (जेएसी) की सर्वसम्मति की सिफारिश का हवाला देते हुए उन्हें अच्छे व्यवहार के आधार पर छूट देने की सिफारिश की गई थी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दो याचिकाओं पर नोटिस जारी किया है। एक याचिका माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल और शिक्षाविद रूप रेखा वर्मा द्वारा दायर की गई थी। वहीं, दूसरी याचिका टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर की गई थी। दोनों में उनकी रिहाई को चुनौती दी गई।