कहते हैं राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है। कम से कम बिहार के पुलिस महानिदेशकों के साथ तो ऐसा ही हो रहा है। बक्सर विधानसभा सीट से टिकट की आस में डीजीपी के पद से इस्तीफा देनेवाले गुप्तेश्वर पाण्डेय को एक बार फिर चूक गए। दूसरी बार उनके साथ ऐसा हुआ है। गुप्तेश्वर पाण्डेय कोई अकेले डीजीपी नहीं है जिन्होंने राजनीति में खुद को आजमाने का फैसला किया पर कामयाब नहीं हुए।
चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस ले चुके बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय का चुनाव में पत्ता कट गया है और उन्हें बक्सर से टिकट नहीं मिल पाया। पांडेय को बक्सर के अलावा वाल्मीकि नगर लोकसभा उप चुनाव से आस थी लेकिन वहां भी नीतीश कुमार की जेडीयू ने दिवंगत सांसद बैद्यनाथ महतो के बेटे सुनील कुमार को कैंडिडेट बनाने का ऐलान कर दिया है ।एनडीए में बक्सर सीट बीजेपी को मिली और बीजेपी ने इस सीट से बुधवार की शाम परशुराम चतुर्वेदी को टिकट देने का ऐलान कर दिया है।
गुप्तेश्वर पांडेय के साथ ऐसा चुनावी हादसा दूसरी बार हुआ है। इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में गुप्तेश्वर पांडेय ने बीजेपी के टिकट पर बक्सर लोकसभा सीट लड़ने के लिए वीआरएस लिया था लेकिन टिकट नहीं मिला। कुछ समय बाद नीतीश कुमार की सरकार ने उनकी वीआरएस वापसी की अर्जी स्वीकार कर ली जिसके वो नौकरी में लौट गए ।
सुशांत राजपूत केस में बिहार पुलिस की सक्रियता का चेहरा गुप्तेश्वर पांडेय थे और इसी दौरान उन्होंने एक बार रिया चक्रवर्ती की औकात तक पूछ ली थी । शिवसेना वीआरएस लेने के बाद से ही पांडेय को निशाना बना रही है और कह रही है कि चुनावी लाभ के लिए पांडेय ने ये सब किया। ऐसा लगता है कि गुप्तेश्वर पांडेय की चुनावी लॉंचिंग डूब चुकी है !
11 साल पहले भी खा गए थे मात
1987 बैच के आईपीएस अफसर रहे गुप्तेश्वर पाण्डेय ने राजनीति में इससे पहले भी उतरने की कोशिश की थी। आईजी रहते उन्होंने 2009 में वीआरएस लिया था। बताया जाता है कि वह बक्सर से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे पर टिकट कंर्फ्म नहीं हुआ। बाद में उन्होंने वीआरएस वापस ले लिया। दूसरी दफे चुनावी राजनीति में उतरने के लिए उन्होंने डीजीपी का पद छोड़ दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में जदयू की सदस्यता भी ली। उनके बक्सर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें काफी दिनों से थी। पर मामला उस वक्त फंसता दिखा जब यह सीट जदयू की बजाए भाजपा के खाते में रह गई। बावजूद उम्मीद जताई जा रही थी कि वह भाजपा के प्रत्याशी हो सकते हैं। पर बुधवार को उम्मीदवार की घोषणा के साथ यह आस भी खत्म हो गई।
राजनीति में उतरनेवाले बिहार के चौथे डीजीपी
गुप्तेश्वर पाण्डेय से पहले बिहार के डीजीपी रहे चुके तीन पुलिस अफसरों ने राजनीति में किस्मत आजमाई थी। सबसे पहले साल 2004 में डीपी ओझा बेगूसराय से सीपीआई (एमएल) के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े पर हार गए। इसी कड़ी में आशीष रंजन सिन्हा का भी नाम शामिल है। राजद से जुड़ने के बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 2014 में नालंदा से लोकसभा का चुनाव लड़ा पर जीत का सेहरा उनके सिर भी नहीं बंधा। बिहार के डीजीपी रहे आरआर प्रसाद ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था से राजनीति में इंट्री की पर चुनावी मैदान में कामयाबी नहीं मिली।
आईपीएस ललित विजय सिंह बने थे मंत्री
आईपीएस अधिकारी रहे ललित विजय सिंह डीजीपी तो नहीं बने पर राजनीति में जरूर कामयाब हो गए। उन्होंने जनता दल के टिकट पर बेगूसराय से चुनाव लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते भी। बाद में वह केन्द्र में राज्यमंत्री बने थे।