बिहार के विधानसभा चुनाव ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में एक और दरार डाल दी है, जिसका असर नतीजों के बाद सामने आएगा। इससे लगातार कम हो रहे एनडीए के घटक दलों में और कमी आ सकती है। बिहार में जदयू और लोजपा में जिस तरह से तलवारें खिंची हुई हैं उसे देखते हुए दोनों का अब लंबे समय तक एनडीए में एक साथ रहना मुश्किल होगा। बीते लोकसभा चुनावों के बाद एनडीए से उसके दो बड़े घटक शिवसेना व अकाली दल अलग हो चुके हैं।
भाजपा का अपना विस्तार तो तेजी से हो रहा है, लेकिन उसके सहयोगी दलों की संख्या घटती जा रही है। एनडीए में गिनती के लिए कई दल शामिल हैं, लेकिन लोकसभा व विधानसभाओं में ताकत देखें तो यह संख्या काफी कम रह गई है। तीन साल पहले जदयू के एनडीए में वापसी के बाद लगा था कि एनडीए अब ज्यादा मजबूत होगा, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत के बाद एनडीए में दरारें उभरनी शुरू हो गई। शिवसेना और अकाली दल जैसे विचारधारा से मेल खाने वाले सहयोगी उससे अलग हो गए।
अब जिस तरह से जदयू व लोजपा में घमासान मचा हुआ है और बिहार में लोजपा अलग चुनाव लड़ रही है, उससे लगता है कि चुनावों के बाद एनडीए को एक और बड़ा झटका लग सकता है। जदयू की तरफ से भाजपा पर लगातार दबाब बढ़ रहा है कि वह लोजपा से नाता तोड़े। भाजपा भी कोई फैसला लेने से पहले बिहार के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रही है। इसके बाद की स्थितियों से तय होगा कि एनडीए में कौन रहेगा और कौन नहीं। ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि दोनों दलों का एनडीए में रहना मजबूरी हो जाए।
पश्चिम बंगाल में जीजेएम ने दिया झटका
इस बीच भाजपा को पश्चिम बंगाल में भी झटका लगा है। दार्जिलिंग क्षेत्र में उसकी ताकत गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने एनडीए से हटकर तृणमूल कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया है। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं उसे देखते हुए यह भाजपा के लिए एक झटका है क्योंकि उसने राज्य में बदलाव के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है।