किसान अपने आंदोलन से भी भर रहे हैं सरकार का खजाना…

0
295

किसान संगठनों और सरकार के बीच चल रही बातचीत भले ही बेनतीजा रही हो, मगर किसानों ने अपने आंदोलन से केंद्र एवं राज्य सरकारों को खासा फायदा पहुंचा दिया है। दो माह से जारी किसान आंदोलन और 26 जनवरी को निकलने वाली ट्रैक्टर रैली में पेट्रोल-डीजल का खर्च देखें तो यह सवा दो अरब (225 करोड़ रुपये) रुपये से अधिक पहुंच रहा है।

किसान संगठनों के मुताबिक, ट्रैक्टर परेड में करीब दो लाख वाहन शामिल होंगे, जबकि पिछले साठ दिन में लगभग दो लाख वाहन ऐसे थे, जो अपनी बारी के हिसाब से दिल्ली की बाहरी सीमा तक आवाजाही करते रहे हैं। इनके अलावा एक लाख पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियां, जिनमें कार और बाइक शामिल हैं, भी इस आंदोलन का हिस्सा रही हैं। किसान आंदोलन शुरू होने से लेकर ट्रैक्टर रैली तक की सभी गतिविधियों में करीब पांच लाख से ज्यादा वाहनों को इस्तेमाल किया गया है।

पेट्रोल के दाम में सेंट्रल एक्साइज और वैट का 63 फीसदी हिस्सा रहता है। डीजल में यह 60 फीसदी है। किसान नेता हरिंदर सिंह लखोवाल बताते हैं कि हमने जो रूटमैप बनाया है, उसके तहत रैली के दौरान ट्रैक्टर चार सौ किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करेंगे। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से भारी संख्या में ट्रैक्टर दिल्ली की सीमा पर पहुंच चुके हैं। हमारा अनुमान है कि ट्रैक्टर रैली में पांच लाख से अधिक किसान शामिल होंगे। इनमें महिलाओं की बड़ी तादाद रहेगी। पंजाब जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू के अनुसार, इस ट्रैक्टर रैली को दुनिया देखेगी। करीब दो से ढाई लाख ट्रैक्टर दिल्ली के बाहर खड़े हैं।

ट्रैक्टर रैली में भले ही किसान नेता चार सौ किलोमीटर की दूर तय करने की बात कह रहे हैं, मगर दिल्ली यातायात पुलिस ने जो रूट मैप तैयार किया है, उसके मुताबिक पौने दो सौ किलोमीटर की दूरी बनती है। इसमें सिंघु बॉर्डर से केएमपी एक्सप्रेस हाई-वे तक 63 किलोमीटर की दूरी शामिल है। दूसरा मार्च, टिकरी बॉर्डर से वेस्टर्न पेरीफैरियल एक्सप्रेस-वे तक रहेगा। इसकी लंबाई करीब 63 किलोमीटर रहेगी। तीसरा रूट, गाजीपुर से केजीटी एक्सप्रेस-वे तक का है, जो 46 किलोमीटर लंबा है।

क्या है पेट्रोल-डीजल का गणित
एक ट्रैक्टर एक लीटर डीजल में करीब 9-10 किलोमीटर की दूरी तय कर लेता है। ट्रैक्टर रैली के सभी रूट मिलाकर यह दूरी 172 किलोमीटर बनती है। इसमें किसान संगठनों की तरफ से दो लाख ट्रैक्टर चलने का दावा किया गया है। ऐसे में एक ट्रैक्टर को रैली पूरी करने के लिए 18 लीटर डीजल चाहिए।

डीजल का रेट चूंकि हर राज्य में कम या ज्यादा रहता है, इसलिए औसत 76 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से एक ट्रैक्टर का खर्च 1368 रुपये आएगा। दो लाख ट्रैक्टरों का खर्च 27 करोड़ 36 लाख रुपये के पार पहुंच सकता है। चार-पांच राज्यों के विभिन्न इलाकों से दिल्ली तक पहुंचे इन दो लाख ट्रैक्टरों ने औसतन पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय की है। इसके हिसाब से एक ट्रैक्टर में 55 लीटर से ज्यादा डीजल खर्च हुआ है। ऐसे में एक ट्रैक्टर का खर्च लगभग 4180 रुपये बैठता है। ऐसे में दो लाख ट्रैक्टर का खर्च 83 करोड़ 60 लाख रुपये से अधिक चला जाता है।

इसके अतिरिक्त दो लाख ट्रैक्टर ऐसे रहे हैं, जो पिछले साठ दिनों से किसान आंदोलन में आवाजाही करते रहे हैं। इन ट्रैक्टरों के चलने का औसत किलोमीटर करीब पांच सौ रहा है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और यूपी के अनेक इलाकों से ट्रैक्टर एक सप्ताह के लिए आंदोलन स्थल पर पहुंचते थे और उसके बाद वापस लौट जाते थे। उनकी जगह पर दूसरे ट्रैक्टर आ जाते थे।

इन सभी ट्रैक्टरों में लगे डीजल का खर्च भी जोड़ा जाए तो यह लगभग 84 करोड़ रुपये से ज्यादा बैठता है। ट्रैक्टरों के अलावा किसान आंदोलन में कार, बाइक व छोटे ट्रक भी शामिल रहे हैं। इनकी संख्या एक लाख से अधिक बताई जाती है। इन वाहनों में अब तक करीब 43 करोड़ रुपये का पेट्रोल-डीजल इस्तेमाल होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here