सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच जारी तनातनी के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि संविधान का विकास संसद में होना है। न्यायपालिका या कार्यपालिका सहित किसी अन्य सुपर निकाय या संस्था की इसमें कोई भूमिका नहीं है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह संविधान की प्रधानता है, जो लोकतांत्रिक शासन की स्थिरता, सद्भाव और उत्पादकता निर्धारित करती है। लोगों के जनादेश को प्रदर्शित करने वाली संसद संविधान का अंतिम और विशिष्ट निकाय है।
दरअसल, उपराष्ट्रपति धनखड़ तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल पीएस राममोहन राव के संस्मरण के विमोचन के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। इससे पहले शनिवार को केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के संबंधों के बीच लक्ष्मण रेखा होने का जिक्र किया था। वहीं, प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा था कि हर प्रणाली दोष से मुक्त नहीं है, लेकिन यह सबसे अच्छी प्रणाली है, जिसे हमने विकसित किया है।
धनखड़ ने कहा कि संविधान को संसद के जरिए लोगों से विकसित होना है, न्यायपालिका या कार्यपालिका से नहीं। संविधान को विकसित करने में कार्यपालिका की कोई भूमिका नहीं है। इसके साथ ही न्यायपालिका सहित किसी अन्य संस्था की भी इसमें कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि वह विरोधाभास के डर के बिना टिप्पणी कर रहे हैं। उन्होंने संविधान सभा की चर्चा के साथ ही उन देशों के संविधानों का अध्यनन किया है, जहां लोकतंत्र फलता-फूलता है।
किरेन रिजिजू ने क्या कहा था ?
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को कार्यपालिका और न्यायपालिका सहित विभिन्न संस्थानों का मार्गदर्शन करने वाली संवैधानिक ‘लक्ष्मण रेखा’ का जिक्र किया था। उन्होंने आश्चर्य जताया था कि अगर न्यायाधीश प्रशासनिक नियुक्तियों का हिस्सा बन जाते हैं तो न्यायिक कार्य कौन करेगा। रिजिजू उच्चतम न्यायालय की एक पीठ द्वारा सरकार को निर्देश दिए जाने के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति गठित करे।
विशेष रिपोर्ट-
अजय क्रांतिकारी
‘पॉलिटिकल एडिटर’ -ELE India News