आप बस ऐसे ही ‘आभासी सन्तुष्टता’ में अपने जरूरी मुद्दों के गुमशुदगी की रिपोर्ट ढूंढते रहिए !

0
449

एक प्रदेश जो कोरोना की सबसे अधिक मार झेल रहा है, वहां की जनता को कुछ राहत पहुँचाने की बजाय राज्य के मुख्यमंत्री को ही निशाना बनाया जा रहा है। जिस शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए भाजपा, आधी रात में राजभवन को अपना नागपुर कार्यालय समझकर खुलवाती है। जब बात बिगड़ जाती है तो फिर सरकार गिराने की जी तोड़ कोशिश करती रहती है। दुर्भाग्य से इसी बीच एक दुर्घटना होती है जिसे भाजपा राजनीति के लिए इस्तेमाल करके अपने सबसे करीबी सहयोगी ‘ठाकरे परिवार’ का चरित्र हनन करती है। जिस शिवसेना के साथ वर्षों तक सत्ता की साझेदारी रही उसके पीठ में खंजर घोंप देती है। मात्र इसलिए कि राज्य में सत्ता नहीं मिली ? वरना क्या कारण है कि अपने पुराने सहयोगी के साथ राजनीतिक शिष्टाचार भी भूल गए !


भाजपा के शह पर एक बददिमाग और बदतमीज अदाकारा जो कभी गौ मांस खाने की जोरदार पैरवी करती है, तो कभी अपने साथी कलाकारों पर सनकी टिप्पणियां करती रहती है। ड्रामेबाजी इतनी की अपने वास्तविक गेटअप से अलग राजनैतिक गेटअप में आकर मराठा संस्कृति का पाठ पढ़ा रही है और बिकाऊ मीडिया उसमें झाँसी की रानी ढूँढ़ रही है। वो आज राज्य के मुख्यमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करती है और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को ‘पाकिस्तान’ कहती है। जानबूझकर केंद्र सरकार उसे ‘Y’ श्रेणी की सुरक्षा देती है, फिर बीजेपी आईटी सेल के फफूंदे उसे पीड़ित दिखाकर कहते हैं ऑफिस तोड़ दिया ! BMC में आधी भागीदारी तो भाजपा की भी है ? फिर ये घड़ियाली दिखावा क्यों ? बस विरोधी दल की सरकार है, इसलिए माहौल खराब करना है ? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपना प्रदेश संभलता नहीं लेकिन चुनावी आहट सूंघकर वो भी भीड़ गए।

अब देश के लोगों को ये कौन समझाए कि- रिकॉर्डतोड़ छाई बेरोजगारी, बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था, निजीकरण की आड़ में बिक रहा देश, चीन के अतिक्रमण पर ‘कोई नहीं घुसा’ का झूठा दावा, डिसलाइक में डूबा फ्लॉप इवेंट/शो और हर मोर्चे पर नकारी-निकम्मी हो चली सरकार से कोई सवाल न करे..इसलिए ये सारा खेल हो रहा है। बिहार चुनाव बीतने दीजिए इसी रिया चक्रवर्ती को भारतीय सेना के सम्मान का हवाला देकर बीजेपी में शामिल करा लिया जाएगा क्योंकि रिया के पिता एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं। चौंकिएगा मत, ‘गोदी’ है तो मुमकिन है !

आप बस ऐसे ही ‘आभासी सन्तुष्टता’ में अपने जरूरी मुद्दों के गुमशुदगी की रिपोर्ट ढूंढ़ते रहिए । सरकार अब अपने ‘सूचना विहीन’ पालतू मीडिया तंत्र, कृत्रिमता से भरे चुनावी ‘देशभक्ति’ और ‘तर्कहीन’ अंधभक्तों की फ़ौज के पीछे सुस्ता रही है। धीरे धीरे करके अपने चंद पूंजीपतियों (मित्रों) की जेबें भर रही है जो मीडिया मार्केटिंग मैनेज करके सत्ता दिलाने के काम आते हैं। सब कुछ इतना ‘सेट’ हो चला है कि किडनी गायब होने वाला खुद कहता है हम एक ही किडनी लेकर पैदा हुए हैं। अब भला कौन देश को जगाएगा क्योंकि सोए हुए को जगाया जाता है जो जगकर भी सोने का नाटक करे उसे कौन जगाए ? कोशिश कीजिये स्वयं जागने का, फिर मिलेंगे।

__अजीत राय ( ये लेखक के निजी विचार हैं। लेखक एक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं । )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here