देश में इन दिनों तीन कृषि आध्यादेशों को लेकर जबरदस्त बवाल मचा हुआ है। एक तरफ सरकार इसे क्रांतिकारी कदम बता रही हैं तो दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां और किसान संगठन लगातार विरोध कर रहे हैं। इस बीच कल भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के कोटे से केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। सरकार के तमाम दावों के बीच हमने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के हालात पर नजर दौड़ाई। आप भी पूरी रिपोर्ट जरूर पढ़िए।
इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें नए पेराई सत्र की तैयारियों में जुटी हैं मगर, अब तक पिछले पेराई सत्र का पूरा भुगतान ही नहीं हो सका है। पश्चिमी यूपी की 12 चीनी मिलों पर जिले के किसानों के 626 करोड़ 48 लाख रुपये बकाया हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एक तरफ तो पूरी पूंजी फांसी हो रहती है तो दूसरी तरफ अगली फसल के लिए इंतजाम जुटाना एक चुनौती बन जाता है। मुनाफा कमाना तो दूर की बात लागत निकालने के लिए भी किसान को इंतजार करना पड़ता है।
पश्चिमी यूपी की ही बात करें तो किसानों के खाते में अब तक 52.68 प्रतिशत भुगतान ही पहुंचा है। जाहिर है कि करीब आधा भुगतान चीनी मिलों पर बकाया है। कोरोना काल में आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे किसानों को बकाया भुगतान मिले तो थोड़ी राहत मिल सकेगी।
अकेले बागपत जिले के ही एक लाख 24 हजार 264 किसानों ने यहाँ के 12 चीनी मिलों को गन्ना सप्लाई किया है। किसानों का कहना है कि भुगतान नहीं होने से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों ने मिलों को कुलन412 लाख क्विंटल गन्ने की सप्लाई की थी। जिसके भुगतान का उन्हें इंतज़ार है।
एक दैनिक अखबार से बात करते हुए भाकियू के जिलाध्यक्ष प्रताप गुर्जर ने बताया कि किसानों को भुगतान के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। किसानों को बकाए पर ब्याज मिलना चाहिए लेकिन सरकार की कथनी और करनी में अंतर हैं।
वहीं भारतीय किसान संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अन्नू मलिक का कहना है कि भाजपा सरकार खेती और किसानी के मोर्चे पर फेल साबित हुई है। किसानों को बकाया भुगतान नहीं मिल रहा है। अगर बकाया भुगतान मिल जाए तो बाजार की स्थिति भी सुधर सकती है लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
आईये एक नज़र डालते हैं कि किस चीनी मिल पर कितना बकाया है-
चीनी मिल भुगतान
बागपत – 2994.63
रमाला – 7868.57
मलकपुर – 30294.91
किनौनी – 11802.39
दौराला – 22.24
नंगला मल – 10.47
तितावी – 175.24
खतौली – 151.15
भैसाना – 4521.74
ऊन – 1939.96
ब्रजनाथपुर – 223.22
मोदीनगर – 2644.09
(ऊपर दिए आंकड़े में राशि ‘लाख रुपये’ में है और तारीख 31 अगस्त 2020 तक की है।)
बात यहीं खत्म नहीं होती किसानों के ऊपर बिजली और ट्यूबवेल कनेक्शन की भी भारी बकाये की तलवार लटक रही है। किसानों का कहना है कि हमारे जेब में पैसे ही नहीं तो फिर बिलों का भुगतान कहाँ से करें। मतलब साफ है की किसान अपना पसीना बहा कर, अपनी पूंजी लगाकर भी कर्जदार ही बना रहता है। भुगतान में देरी से एक तरफ जहां उसकी लागत भी नहीं निकल पाती तो दूसरी तरफ कर्ज चुकाने का बोझ रहता है। ऐसे में घर परिवार चलाना कितनी बड़ी चुनौती होगी आप समझ सकते हैं। यही कारण है कि किसान भारी तनाव से गुजर रहा है। एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक ही 48000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है, लेकिन अफसोस की ‘कृषि प्रधान’ कहे जाने वाले देश में किसानों की व्यथा पर ध्यान देने वाला कोई नहीं। सरकार बड़े-बड़े वादे करती है किसानों के नाम पर तमाम योजनाएं चलाई जाती हैं लेकिन उनका जमीनी असर नदारद है।
इस बारे में किसान कांग्रेस के संगठन प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुरेंद्र सोलंकी ने हमसे बातचीत में कहा कि – पिछले 6 सालों में किसानों की स्थिति बहुत चिंताजनक हो गई है। केंद्र सरकार बार-बार ऐसे कदम उठाती है जिससे हमारे अन्नदाताओं को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जहाँ यूपीए की सरकार में एक मजबूत भूमि अधिग्रहण बिल लाया गया और किसानों की कर्ज माफी पर काम किया गया। वही मोदी सरकार ने न केवल भूमि अधिग्रहण बिल को कमजोर कर दिया और कर्ज माफी पर तो सरकार ने नजरें ही फेर ली हैं। रही सही कसर सरकार के द्वारा गलत ढंग से लागू लॉकडाउन ने पूरी कर दी। हमने सरकार से मांग की थी कि किसानों को प्रति माह ₹10000 का नकद भुगतान किया जाए जिससे वो एक बार फिर अपनी स्थिति को संभाल सकें लेकिन बजाए इसके सरकार चुपके से तीन ‘काले अध्यादेश’ लेकर आ गयी। इससे साफ़ हो गया है कि ये सरकार किसान विरोधी है। हम लगातार इस सरकार के खिलाफ किसानों के हक और न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन गूंगी बहरी सरकार बिल्कुल सुनने को तैयार नहीं। इसीलिए अब किसानों की समस्याओं को लेकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।