देश में पिछले नौ साल के दौरान महिलाओं और बच्चों के प्रति हुए आपराधिक मामलों के तहत दर्ज किए जाने वाले केसों की संख्या बढ़ती जा रही है। देश में बच्चों के खिलाफ हुए अपराध के चलते 2014 में 89,423 मामले दर्ज किए गए थे। 2021 में ऐसे केसों की संख्या 1,49,404 पर पहुंच गई है। अधिकांश राज्य ऐसे हैं, जहां पर दर्ज केसों की संख्या 2014 के मुकाबले, 2021 में दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। यही स्थिति महिलाओं के साथ होने वाले आपराधिक केसों की भी है। 2014 में महिलाओं के प्रति हुए अपराधों के अंतर्गत 3,39,457 मामले दर्ज हुए थे। 2021 में इन मामलों की संख्या 4,28,278 रही है। खास बात है कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात, गोवा और त्रिपुरा में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है।
इन प्रदेशों में अपराध ने पकड़ी रफ़्तार
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, असम में 2014 के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुई अपराध की घटनाओं को लेकर 19,169 केस दर्ज हुए थे। 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 29,046 रही। हरियाणा में 2014 के दौरान 9010 केस सामने आए थे, जबकि 2021 में इन केसों की संख्या बढ़कर 16,658 पर पहुंच गई। महाराष्ट्र में नौ वर्ष पहले 26,818 केस देखने को मिले थे, तो वहीं 2021 में 39,526 केस दर्ज किए गए। ओडिशा में 2014 के दौरान 14,651 केस दर्ज किए गए थे, जबकि 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 31,352 रही है। राजस्थान में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को लेकर 31,216 केस दर्ज हुए थे, तो वहीं 2021 में वह संख्या 40,738 रही है। तेलंगाना में नौ वर्ष पहले 14,147 केस दर्ज किए गए, तो वहीं 2021 में 20,865 मामले दर्ज हुए थे। उत्तर प्रदेश में भी महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ी है। ऐसे अपराधों में 2014 के दौरान 38,918 केस दर्ज हुए थे, तो वहीं 2021 में इस तरह के मामलों की संख्या 56,083 रही है। तमिलनाडु में 2014 के दौरान 6354 केस, जबकि 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 8501 थी। उत्तराखंड में 2014 में 1413 मामले सामने आए थे, तो वहीं 2021 में ये केस बढ़कर 3431 हो गए।
इन राज्यों में घटे महिलाओं के खिलाफ अपराध
दिल्ली में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या घटी है। 2014 में जहां 15,319 केस दर्ज हुए थे, तो वहीं 2021 में इनकी संख्या 14,277 रही है। पश्चिम बंगाल में 2014 के दौरान दर्ज हुए 38,424 केसों की तुलना में 2021 में 35,884 मामले दर्ज हुए हैं। गुजरात में 2014 के दौरान 10,854 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में ऐसे केसों की संख्या 7348 रही है। गोवा में नौ साल पहले ऐसे मामलों की संख्या 508 थी, तो 2021 में यह आंकड़ा 224 पर सिमट गया। त्रिपुरा में 2014 में 1618 केस दर्ज किए गए, जबकि 2021 में इन मामलों की संख्या 807 रही है। वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ भी अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं। 2014 में ऐसे केसों की संख्या 18,714 थी, जबकि 2021 में वह संख्या 26,110 हो गई है। इस कड़ी में बच्चों को भी जमकर निशाना बनाया गया। 2014 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 89,423 केस दर्ज किए गए थे। अगर 2021 में इन आंकड़ों पर गौर करें तो वह हैरान करने वाले हैं। दो वर्ष पहले तक देश में बच्चों के खिलाफ हुए अपराधों में दर्ज केसों की संख्या 1,49,404 रही है।
इन राज्यों में दोगुने से ज्यादा हुए बच्चों के खिलाफ अपराध
2014 में असम में बच्चों के खिलाफ हुए अपराधों में 1385 मामले दर्ज हुए थे। 2021 में यह संख्या बढ़कर 5282 हो गई। बिहार में भी इस अवधि के दौरान बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ गई। 2014 में इस राज्य में ऐसे अपराधों को लेकर 2255 केस दर्ज हुए, तो वहीं 2021 में 6894 मामले सामने आए थे। हरियाणा में 2014 के दौरान 2540 केस दर्ज हुए, तो वहीं 2021 में 5700 मामले दर्ज कराए गए। कर्नाटक में 2014 में 3416 केस और 2021 में 7261 मामले सामने आए थे। महाराष्ट्र में नौ साल पहले ऐसे मामलों की संख्या 8115 थी, जबकि 2021 में ये केस बढ़कर 17,261 हो गए। ओडिशा में 2014 के दौरान 2196 केस, जबकि 2021 में 7899 मामले दर्ज हुए थे। राजस्थान में नौ वर्ष पहले 3880 केस तो 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 7653 रही है। तलिनाडु में 2014 के दौरान 2354 केस तो वहीं 2021 में 6064 मामले सामने आए हैं। तेलंगाना में नौ वर्ष पहले बच्चों के खिलाफ हुए अपराधों में 1930 केस दर्ज किए थे, जबकि 2021 में 5667 मामले सामने आए थे।
राष्ट्रीय राजधानी में घटे हैं बच्चों के प्रति अपराध के मामले
इस अवधि में दिल्ली की बात करें, तो यहां 2014 में 9350 मामले सामने आए थे। 2021 में 7118 केस दर्ज किए गए हैं। त्रिपुरा में 2014 के दौरान 369 केस तो वहीं 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 236 रही है। गोवा में भी ऐसे मामले घटे हैं। यहां पर 2014 में 330 मामले, तो वहीं 2021 में 151 केस दर्ज हुए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं। महिलाओं के प्रति अपराध की जांच और अभियोजन सहित कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने तथा नागरिकों के जान माल की रक्षा करने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की होती है। राज्य सरकारें, कानूनों के मौजूदा प्रावधानों के तहत ऐसे अपराधों से निपटने के लिए सक्षम हैं। भारत सरकार, ने पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल की हैं।
दो माह के भीतर पूरी करनी होगी जांच
यौन अपराधों के प्रभावकारी निवारण के लिए दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 अधिनियमित किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ साथ, बलात्कार के मामलों में दो माह के भीतर जांच पूरी किए जाने तथा आरोप पत्र दायर करने और विचारण (ट्रायल) को भी दो माह के अंदर पूरा करने का अधिदेश दिया गया है। आपातकालीन कार्रवाई सहायता प्रणाली में सभी आपात स्थितियों के लिए पूरे भारत में, एकल अंतरराष्ट्रीय मान्य नंबर (112) पर आधारित प्रणाली की व्यवस्था है, जिसमें कंप्यूटर की सहायता से क्षेत्रीय संसाधनों को विपत्ति के स्थान पर पहुंचाया जाता है। स्मार्ट पुलिस व्यवस्था और सुरक्षा प्रबंधन में सहायता पहुंचाने की प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए, पहले चरण में आठ शहरों (अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई) में सुरक्षित शहर परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। गृह मंत्रालय ने दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 के अनुसार, यौन हमले से संबंधित मामलों की समयबद्ध जांच की निगरानी करने, उसे ट्रैक करने के कार्य को सुगम बनाने के लिए 19 फरवरी 2019 को पुलिस के लिए ‘यौन अपराध जांच ट्रैकिंग प्रणाली’ नामक एक ऑनलाइन विश्लेषणात्मक टूल लांच किया है।
डीएनए विश्लेषण इकाइयों की स्थापना और उन्नयन
जांच में सुधार के लिए गृह मंत्रालय ने केंद्रीय और राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में डीएनए विश्लेषण की इकाइयों को सशक्त बनाने के लिए कदम उठाए हैं। इसमें केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान, प्रयोगशाला चंडीगढ़ में डीएनए की एक अत्याधुनिक इकाई स्थापित करना शामिल है। गृह मंत्रालय ने कमी के विश्लेषण और मांग के मूल्यांकन के बाद राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में डीएनए विश्लेषण इकाइयों की स्थापना और उन्नयन की भी मंजूरी प्रदान की है। गृह मंत्रालय ने यौन हमले के मामलों में फोरेंसिक साक्ष्य के संग्रहण और यौन हमले संबंधी साक्ष्य संग्रहण किट की मानक संरचना के लिए दिशानिर्देश अधिसूचित किए हैं। जनशक्ति में पर्याप्त क्षमता सृजन को सुगम बनाने के लिए, जांच अधिकारियों, अभियोजन अधिकारियों तथा चिकित्सा अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण व कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो ने प्रशिक्षण के भाग के तौर पर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को ओरिएंटेशन किट के रूप में यौन हमला साक्ष्य संग्रहण की 14,950 किटें वितरित की हैं।
विशेष रिपोर्ट-
दिनेश कुमार जैन
‘नेशनल कॉरस्पॉडेंट’ -ELE India News