निष्ठावान एवं कर्मठ कार्यकर्त्ता पन्ना प्रमुख , बुथ अध्यक्ष, पोलिंग ऐजेंट एवं सक्रिय कार्यकर्त्ता अपनी सक्रिय भूमिका निरंतर जारी रखकर पार्टियों के लिए तैयार रहते हैं। परंतु चुनाव के समय प्रायः देखा गया कि शिर्ष नेतृत्व द्वारा इन्हीं कार्यकर्त्ताओं को नजरअंदाज कर अन्य दलों के दलबदलू नेताओं को उम्मीदवार घोषित किया जाता है जो चुनाव हारने के बाद या तो निष्क्रिय हो जातें हैं या घर वापसी कर लेते हैं। ऐसे में चुनाव बाद दंगों मे सर्वाधिक प्रभावित यह बुथ लेवल के कार्य कर्त्ता ही होते हैं। शिर्ष नेतृत्व इन लोगों को इनके हाल पर छोड़ देते हैं जो उचित नहीं है।
यही कार्य कर्त्ता संगठन के प्रत्येक कार्य पुर्ण लगन , निष्ठा, समपर्ण के साथ पुर्ण कालिक की तरह करते हैं। इस प्रकार सर्वविदित होता है कि यह राजनीतिक दल का कार्य कर्त्ता है जब राजनीतिक बदले की हिंसा अन्य राजनीतिक दल के कार्यकर्त्ता सत्ता के मद मे चूर इन कार्यकर्त्ताओं के घरों पर हमला कर लुटमार , हत्या , बलात्कार , आगजनी की वारदात को अंजाम देते हैं। और उनके राजनीतिक संरक्षक उन्हें बचाने का कार्य करते हैं। परन्तु इन पिड़ित निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं की कोई सुध नहीं लेता। शुचिता की राजनीति करनेवाले अनुशासित दल में दलबदलूओं / नौकरशाहीयों पर भरोसा कर अपने दल के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्त्ताओं को दरकिनार करते हैं फिर भी यही कार्य कर्त्ता पुर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ चुनाव में मुस्तैदी से कार्य करते हैं।
ऐसे में दल चुनाव जीतकर सत्ता में आता है तब संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की बजाय गैर संवैधानिक लोग सत्ता को “रिमोट” से चलाते हैं जिससे नौकरशाही हावी होती है जिससे सरकार की छवि धुमिल होती है। शिर्ष नेतृत्व के इस प्रयोग से कुछ प्रदेशों में “दल” सत्ता में आते आते दुर हो गए। दिल्ली इस प्रयोग का उदाहरण है। संगठन में बैठे नेतृत्व बंदकमरों बैठकर ऐसे कई बेतुके निर्णय लेकर प्रयोग करते हैं जैसे “अन्डर फौरटी” (चालिस वर्ष से कम) के लोग ही संगठन का दायित्व संम्भालेगें। इससे संगठन का नेतृत्व अपरिपक्व हाथों में आ गया। इस उम्र के अधिकांश लोग फोटो और मोबाइल में ही व्यस्त रहते हैं धरातल पर कोई कार्य क्रम नहीं होता। इन लोगों के व्यवहार के कारण संजिदा कार्य कर्त्ता अपने को निष्क्रिय करलेते हैं। शिर्ष नेतृत्व से अपेक्षा है कि ऐसे हर पहलू पर विचार कर संगठन को विस्तार करने की दिशा में उचित निर्णय ले।
वीरेन्द्रसिंह चौहान, जावरा
राजनीतिक “चिंतक”, कार्यकर्त्ता