इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पुत्र की तरह पुत्री भी परिवार की सदस्य होती है, चाहे विवाहित हो या अविवाहित। कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली के तहत अविवाहित शब्द को लड़का-लड़की के आधार पर भेद करने वाला मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया है तो पुत्री के आधार पर आश्रित की नियुक्ति पर विचार किया जाना चाहिए। इसके लिए नियम संशोधित करने की आवश्यकता नहीं है।
कोर्ट ने बीएसए प्रयागराज के याची के विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति देने से इंकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है और दो माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता घनश्याम मौर्य ने बहस की।
इनका कहना था कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने नियमावली में अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देते हुए रद कर दिया है। इसलिए याची विवाहित पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का अधिकार है। बीएसए ने कोर्ट के फैसले के विपरीत आदेश दिया है, जो अवैध है। सरकार की तरफ से कहा गया कि शब्द असंवैधानिक है किंतु नियम सरकार ने अभी बदला नहीं है। इसलिए विवाहित पुत्री को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है।
याची का कहना था कि उसकी मां प्राइमरी स्कूल चाका में प्रधानाध्यापिका थी। सेवा काल में हृदय गति रुक जाने से मौत हो गई। उसके पिता बेरोजगार हैं। मां की मौत के बाद जीवनयापन का संकट उत्पन्न हो गया है। उनके तीन बेटियां हैं। सबकी शादी हो चुकी है। याची ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की। जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देने के बाद नियमावली में पुत्री शब्द बचा है। तो बीएसए विवाहित पुत्री को नियम न बदले जाने के आधार पर नियुक्ति देने से इंकार नहीं कर सकते हैं। शब्द हटने से नियम बदलने की जरूरत ही नहीं है।