किसी भी देश के लिए यह अच्छी बात नहीं मानी जाती कि उसके नागरिक दूसरे देशों की नागरिकता लेने को विवश हों। विदेश मंत्री ने संसद में लिखित जवाब देते हुए बताया कि पिछले बारह सालों में कुल सोलह लाख तिरसठ हजार चार सौ चालीस लोग भारतीय नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों में जा बसे हैं। इन सालों में हर साल एक लाख से अधिक लोगों ने देश छोड़ा। सबसे अधिक पिछले साल- सवा दो लाख से अधिक लोग भारत की नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों में बस गए।
इन लोगों ने कारोबार या नौकरी के लिए अपने देश की नागरिकता छोड़ दी। हमारे देश में चूंकि दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है, इसलिए जो लोग दूसरे देशों में बस जाते हैं, उनकी नागरिकता स्वत: समाप्त हो जाती है। मगर तथ्य यह भी है कि दूसरे देशों की नागरिकता लेना भी इतना आसान नहीं है कि जो चाहे, वही उन देशों में जाकर बस जाए। भारत छोड़ने वालों से सबसे अधिक लोगों ने अमेरिका की नागरिकता ली है। वहां की नागरिकता हासिल करने के लिए लाखों भारतीय जद्दोजहद कर रहे हैं, नौकरी चली जाने के बाद उन्हें वापस आने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता। जाहिर है, ऐसे लाखों लोग मजबूरी में भारत के नागरिक बने हुए हैं।
हकीकत यह है कि हमारे देश से बहुत सारे विद्यार्थी पढ़ाई करने के लिए दूसरे देशों का रुख करते हैं। फिर वहीं वे कोई नौकरी करके बस जाते हैं। इसी तरह बहुत सारे लोग कारोबार के सिलसिले में दूसरे देशों की नागरिकता ले लेते हैं। तथ्य तो यह भी है कि बहुत सारे ऐसे कारोबारियों ने दूसरे देशों की नागरिकता ले ली, जिनका भारत में जमा-जमाया कारोबार था। कुछ समय से यह चिंता भी जताई जा रही है कि कारोबारियों के इस तरह पलायन से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश के कई हिस्सों और तबकों में विदेश जाकर नौकरी या कारोबार करना और फिर वहीं बस जाना प्रतिष्ठा की बात मानी जाती है। यह भी ठीक है कि नौकरी के सिलसिले में विदेश गए लाखों भारतीय यहां भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा भेजते हैं, जिससे सरकार का खजाना भरता है। मगर यह प्रश्न अनुत्तरित है कि आखिर लोगों के सामने ऐसी स्थिति ही क्यों आती है कि उन्हें अपने देश की नागरिकता छोड़ कर पराई जमीन पर जा बसना ज्यादा सुरक्षित जान पड़ता है।
दरअसल, शिक्षा और रोजगार के माकूल अवसर उपलब्ध न होने के कारण लाखों विद्यार्थी हर साल देश छोड़ने पर मजबूर होते हैं। आंकड़े गवाह हैं कि भारतीय संस्थानों से जितने विद्यार्थी हर साल तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर बाहर निकलते हैं, उनमें से बमुश्किल एक तिहाई को सम्मानजनक नौकरी मिल पाती है। वेतन आदि के मामले में भी यहां नौकरीशुदा लोगों की स्थिति असंतोषजनक ही है। ऐसे में विदेश पढ़ने गए विद्यार्थी यहां वापस लौटना ही नहीं चाहते। यही हाल कारोबारियों का है।
सरकार कारोबार के लिए चाहे जितनी अनुकूल स्थितियां बनाने का प्रयास करती हो, मगर हकीकत यही है कि निवेश और आय का अनुपात सदा अनिश्चित बना रहता है। कारोबार के लिए सुरक्षित वातावरण होता, तो वे अपना देश छोड़ कर कभी न जाते। इसलिए इस तरह अपने देश के संसाधनों का उपयोग कर कौशल अर्जित करने के बाद लोगों का दूसरे देशों में जाकर बसना सरकार के लिए इस दिशा में नए सिरे से सोचने की जरूरत रेखांकित करता है।
विशेष रिपोर्ट-
__प्रकाश बारोड़
सह-संस्थापक : ELE India News