साहित्य रचना- शीर्षक ‘वीर बाँकुरे’ द्वारा रचित- माया (नारायणी) बदेका

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‘वीर बाँकुरे’

जंजीरों में बँधकर भी वह ,जी भर कर मुस्काये थे।
देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे।

माँ,बहन, बेटी उनसे, बिछुड़ने की नही पीर थी।
वह भी रांझा किसी के,उनकी भी कोई हीर थी।
पर देशप्रेम की बँधी ,उनके मन में कड़ी जंजीर थी।
ऐसे वीर सपूत मीटे देश पर, वीराँगना के जाये थे।

जंजीरों में बँधकर भी वह ,जी भर कर मुस्काये थे।
देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे।

दीपावली के दीप जले,होली की कहीं अबीर थी।
वीर बाँकुरे मिले देश को,भारत की तकदीर थी।
आजाद देश की शान बने वह, ऐसी तस्वीर थी।
हमारे लिए बदन पर उनने, अनगिनत कोड़े खाये थे।

जंजीरों में बँधकर भी वह ,जी भर कर मुस्काये थे।
देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे।
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स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित, प्रेषिका- माया (नारायणी) बदेका, उज्जैन, मध्य प्रदेश

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