दुनियाभर में अब तक 4 करोड़ 68 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित करने वाला और 12 लाख से अधिक लोगों की सांसें थाम चुके कोरोना वायरस का क्या अभी और भी खतरनाक रूप दिखना बाकी है? क्या कोरोना की दूसरी लहर और भी मारक होगी? करीब 100 साल पहले दुनिया में तबाही मचाने वाले स्पैनिश फ्लू का उदाहरण देखें और यूरोपीय देशों में कोरोना वायरस की दूसरी लहर पर नजर डालें तो इन सवालों का जवाब हां में मिलता है और यह बेहद डरावना है।
1918 में दुनियाभर में स्पैनिश फ्लू नाम की बीमारी फैली थी, जिससे करीब 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे और करीब 2 से 5 करोड़ लोग मारे गए थे, यानी पहले विश्व युद्ध में मारे गए सैनिकों और नागरिकों की कुल संख्या से भी अधिक लोगों की जान इस बीमारी ने छीन ली थी। हालांकि, यह बीमारी दो साल तक रही थी, लेकिन इसका सबसे क्रूर रूप 1918 के अंत के तीन महीनों में दिखा था। विशेषज्ञों का कहना है कि स्पैनिश फ्लू की दूसरी लहर में वायरस का म्यूटेशन हो चुका था, जिसने इसे और भी घातक बना दिया था।
प्रथम विश्व युद्ध के आखिरी दौर में मार्च 1918 में स्पेनिश फ्लू का संक्रमण शुरू हुआ था और जुलाई 1918 आने तक पहली लहर शांत हो चुकी थी, लेकिन सितंबर में दूसरी लहर ने दस्तक दे दी। स्पेनिश फ्लू की दूसरी लहर कहीं अधिक घातक थी और उसमें मरने वालों की संख्या भी पहली लहर से ज्यादा थी। शुरुआत में यह मौसमी फ्लू की तरह ही था, लेकिन अत्यधिक संक्रामक था। सबसे पहले यह फ्लू कंसास में अमेरिकी सेना के कुक कैंप फंस्टन में दिखा था, जिसे 104 डिग्री बुखार के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसके बाद यह सैनिकों में तेजी से फैल गया। एक महीने के भीतर करीब 1,100 सैनिक इससे संक्रमित हो चुके थे और 38 की मौत हो गई थी।
युद्ध की वजह से यूरोप में गए ये सैनिक अपने साथ संक्रमण भी ले गए। अप्रैल से मई 1918 के बीच यह बीमारी इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और इटली में जंगल की आग की तरह फैल गई। फ्रांस और ब्रिटेन के सैनिक बड़ी संख्या में स्पैनिश फ्लू से संक्रमित हो चुके थे। लेकिन शुरुआत में लोगों ने इसे हल्के में ही लिया, क्योंकि यह घातक नहीं था। बुखार और अस्वस्थता जैसे लक्षण ही दिखते थे और वह भी तीन दिन तक ही।
1918 की गर्मियों तक स्पैनिश फ्लू के मामलों में कमी आ गई थी, जैसा कि कोरोना वायरस के मामलों में यूरोप के अधिकतर देशों में दिखा। लेकिन यह तूफान से पहले की शांति ही साबित हुई। सितंबर 1918 में यूरोप में कहीं स्पैनिश फ्लू वायरस म्यूटेशन के बाद बेहद खतरनाक रूप में सामने आया, जो लक्षण दिखने के पहले 24 घंटे के भीतर ही नौजवान और स्वस्थ महिलाओं-पुरुषों को मौत की नींद सुलाने लगा। सितंबर से नवंबर 2018 के बीच स्पैनिश फ्लू से मृत्यु दर में तेज इजाफा होने लगा। अमेरिका में ही केवल अक्टूबर महीने में 1 लाख 95 हजार लोग मारे गए।
कोरोना के साथ भी हो सकता है ऐसा?
पिछले साल के अंत में चीन से निकले कोरोना वायरस को लेकर अभी बहुत कुछ पता नहीं है। पिछले साल यह उम्मीद लगाई गई थी कि गर्मियों में कोरोना वायरस खुद खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, कुछ देशों में जहां शुरुआत में यह तेजी से फैला था उनमें पहली लहर गर्मियों में शांत जरूर हो गई। लेकिन कुछ महीनों तक राहत के बाद इन देशों में दोबारा लॉकडाउन की नौबत आ गई है। इस समय यूरोप कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से गुजर रहा है। ब्रिटेन ने अप्रैल में औसतन प्रतिदिन करीब 7,860 मामले सामने आने की बात कही थी, लेकिन अक्टूबर में यह आंकड़ा बढ़कर 20,000 मामले प्रतिदिन हो चुका है।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक कोरोना वायरस अपेक्षाकृत ठंडे तापमान में लंबे वक्त तक जीवित रह सकता है। दुनियाभर के दूसरे विशेषज्ञ भी इसी तरह का डर जता रहे हैं। यूरोप में जो ट्रेंड दिख रहा है वह भारत जैसे देशों को भी चिंता में डाल रहा है जहां पहली लहर शांत हो पड़ती दिख रही है। भारत में पिछले एक महीने में कोरोना वायरस संक्रमण और इससे होने वाली मौतों में भारी गिरावट आई है। यहां भी सर्दियों में दूसरी लहर आने की आशंका जताई जा रही है।