विधानसभा चुनाव में हार और कई विपक्षी दलों के एकजुट होकर कांग्रेस को अलग-थलग करने की कोशिशों के बीच पार्टी अपनी रणनीति बदल रही है। विपक्ष को एकजुट रखने के लिए पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ रिश्तों को फिर से बेहतर बनाना चाहती है। कांग्रेस संसद के मॉनसून सत्र से पहले अपने संगठन में कई बड़े बदलाव करना चाहती है और इसी के तहत लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को इस पद से हटा सकती है। इसके बाद सबसे बड़ा सवाल यही था कि लोकसभा में यह कमान कांग्रेस किसे देगी। सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी का नाम सदन में विपक्ष के नेता के तौर पर सबसे आगे चल रहा है।
हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, दो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने इसकी पुष्टि की है कि विपक्ष के नेता के लिए पार्टी में राहुल गांधी का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। हालांकि, इन नेताओं ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि फिलहाल इस मसले पर ज्यादा कुछ बताने के लिए नहीं है क्योंकि राहुल गांधी अभी तक इस जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं हुए हैं। बहरहाल, एचटी को मिली जानकारी के मुताबिक सोनिया और प्रियंका गांधी दोनों ही यह चाहती हैं कि राहुल गांधी यह भूमिका स्वीकार कर लें और इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इसको लेकर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। दो अन्य नेताओं ने बताया, अगर राहुल गांधी यह पद स्वीकार कर लेते हैं तो इसके बाद कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष का पद परिवार से बाहर के किसी सदस्य को मिल सकता है। अगर ऐसा होता है तो इससे जी-23 नेताओं की मांग भी पूरी हो जाएगी, जो पार्टी में चुनाव की मांग कर रहे थे। हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर फैसला बाद में किया जाएगा क्योंकि मौजूदा ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का कार्यकाल 2022 तक है।
हालांकि, राहुल गांधी को सदन में कांग्रेस पार्टी का नेता बनाए जाने को लेकर पार्टी के ही कई नेता खुश नहीं है। एक सांसद ने पहचान न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘इससे राहुल गांधी सिर्फ संसद के होकर रह जाएंगे और कुछ वजहों से तो यह कांग्रेस अध्यक्ष के पद संभालने से भी ज्यादा मुश्किल है।’
बंगाल चुनाव में नहीं खुला था कांग्रेस का खाता
लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष भी है। चौधरी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धुर विरोधी माने जाते हैं। इसलिए चुनाव के दौरान उन्होंने ममता पर निशाना साधने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इस सबके बावजूद पार्टी चुनाव में अपना खाता तक खोलने में नाकाम रही। कांग्रेस ने लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। प्रदेश कांग्रेस के दबाव के बावजूद पार्टी का कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नहीं गया। पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिर्फ एक दिन प्रचार किया, पर तृणमूल कांग्रेस खासकर ममता बनर्जी पर हमला करने से परहेज किया।
तृणमूल से नजदीकी बढ़ाने के लिए अधीर रंजन चौधरी का जाना तय!
संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। लोकसभा में सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस को तृणमूल की जरुरत है। तृणमूल भी कांग्रेस को लेकर सरकार पर राज्यपाल को वापस बुलाने का दबाव बनाना चाहती है। ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच तालमेल बढ़ सकता है। कांग्रेस की इस कोशिश को एनसीपी प्रमुख शरद पवार के घर पर हुई विपक्षी दलों की बैठक से भी जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि यह बैठक तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा के राष्ट्र मंच के बैनर तले हुई थी। इसलिए, पार्टी ममता के साथ रिश्तों को बेहतर बनाना चाहती है। इस बीच, हार के कारणों की समीक्षा के लिए गठित अशोक चव्हाण समिति अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप चुकी है। प्रदेश कांग्रेस के कई नेता शर्मनाक हार के लिए अधीर रंजन चौधरी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अभी रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा है। उसके बाद कोई निर्णय किया जाएगा।