रेप केस की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि शादी के वादे पर शारीरिक संबंध बनाना हर बार रेप नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाना रेप की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है और लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाना और फिर बाद में शादी के वादे से मुकरने के आधार पर रेप का मुकदमा दर्ज नहीं कराया जा सकता है। उच्च न्यायालय ने इसी तरह के कथित दुष्कर्म के मामले में आरोपी को बरी करने के लिए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है।
जस्टिस विभु बाखरू ने निचली अदालत के खिलाफ की अपील को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि महिला और आरोपी देनों लंबे समय तक आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि महिला ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने में भी 640 दिनों की देरी कर दी है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा हैकि शारीरिक संबंध बनाने के लिए शादी का वादा करने का प्रलोभन देना और पीड़िता के इस तरह के झांसे में आना समझ में आ सकता है, लेकिन शादी का वादा एक लंबे और अनिश्चित समय की अवधि में शारीरिक संबंध के लिए सरंक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके साथ ही उच्च न्यायलय ने कहा है कि महिला की शिकायत के साथ-साथ उसकी गवाही से भी साफ जाहिर होता है कि आरोपी के साथ उसके संबंध सहमति से बने थे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि महिला की शिकायत के मुताबिक उसने 2008 में आरोपी के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे और इसके तीन या चार माह बाद उसने उससे शादी करने का वादा किया। इसके बाद वह लड़के के साथ रहने लगी थी। न्यायालय ने कहा है कि महिला ने शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि वह दो बार गर्भवती हुई। लेकिन आरोपी के बच्चे की चाहत नहीं होने के चलते उसने दवाई लाकर दी जिससे गर्भपात में उसे मदद मिली।
उच्च न्यायालय ने कहा है कि महिला को यह भी याद नहीं है कि वह कब गर्भवती हुई और कब गर्भपात कराया। इसके साथ ही साक्ष्यों की कमी और अन्य पहलुओं को देखते हुए उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ महिला की अपील को खारिज कर दिया। निचली अदालत के 24 मार्च 2018 को साक्ष्यों के अभाव में आरोपी को दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया था।