रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को आज सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। शीर्ष अदालत 2018 के एक इंटीरियर डिजायनर और उनकी मां को आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामले में अंतरिम जमानत के लिए गोस्वामी की अपील पर सुनवाई कर रही थी। गोस्वामी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी, जिसमें उन्हें और दो अन्य आरोपियों- फिरोज शेख और नीतीश सारदा- को अंतरिम जमानत देने से इंकार करते हुए कहा था कि इसमें हमारे असाधारण अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। अर्नब और अन्य आरोपियों ने अंतरिम जमानत के साथ ही इस मामले की जांच पर रोक लगाने और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध उच्च न्यायालय से किया था।
Arnab Goswami bail plea in Supreme Court: A Bench headed by Justice Chandrachud says Arnab Goswami and two other accused be released on interim bail on a bond of Rs 50,000. It directs the Commissioner of Police to ensure the order is followed immediately. https://t.co/7x9y0DjkKd
— ANI (@ANI) November 11, 2020
उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के मामले में सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं, तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं।
अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ”हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं।” न्यायालय ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है। पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए।
बंबई हाईकोर्ट से नहीं मिली थी जमानत
बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को इस मामले में अर्नब गोस्वामी और दो अन्य को अंतरिम जमानत देने से इंकार करते हुए कहा था कि उन्हें राहत के लिए निचली अदालत जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर आरोपी अपनी गैरकानूनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हैं और जमानत की अर्जी दायर करते हैं, तो संबंधित निचली अदालत चार दिन में उस पर निर्णय करेगी।
चार नवंबर को गिरफ्तार किए गए थे अर्नब गोस्वामी
गोस्वामी को चार नवंबर को मुंबई में उनके निवास से गिरफ्तार करके पड़ोसी जिले रायगढ़ के अलीबाग ले जाया गया था। उन्हें और दो अन्य आरोपियो को बाद में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया जिन्होंने आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजने से इंकार कर दिया था। अदालत ने तीनों को 18 नवंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। गोस्वामी को शुरू में अलीबाग जेल के लिए कोविड-19 केन्द्र के रूप में एक स्थानीय स्कूल परिसर में रखा गया था, लेकिन 8 नवंबर को उन्हें रायगढ़ जिले में स्थित तलोजा जेल भेज दिया गया क्योंकि उन पर न्यायिक हिरासत के दौरान मोबाइल फोन के इस्तेमाल का आरोप था।