मध्य प्रदेश में होने वाले उपचुनाव को लेकर राज्य के एक हिस्से में चुनावी रैली और सभाओं पर हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच द्वारा लगाई गई रोक को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। आयोग ने हाईकोर्ट के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 329 का उल्लंघन बताया है। इस अनुच्छेद के तहत आयोग को चुनाव की अधिसूचना जारी होने से नतीजे आने तक मिले विशेष अधिकारों का जिक्र है।
आयोग ने अपनी याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट का आदेश आयोग के काम में हस्तक्षेप है। उल्लेखनीय है कि इस संबंध में दो अन्य याचिकाएं भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर और मुन्ना लाल गोयल ने भी लगाई हैं। याचिकाकर्ताओं ने इन पर तत्काल सुनवाई की मांग की, लेकिन इन पर सुनवाई कब से हो, कोर्ट ये फैसला 26 अक्टूबर को लेगा। याचिका में हाईकोर्ट के पैरा 14 में पारित आदेश को भी आयोग के कामों में दखल बताया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर राजनीतिक पार्टी भौतिक रूप से सभा करना चाहती है तो उसके लिए इजाजत लेते समय बताना होगा कि उस जगह वर्चुअल सभा क्यों नहीं हो सकती है।
कलेक्टर को उनके आवेदन के बाद स्पीकिंग ऑर्डर पास करना होगा और सभा की अनुमति के लिए मामला चुनाव आयोग को भेजना होगा। इसके बाद राजनीतिक दल सभा कर पाएंगे। आयोग ने 21 अक्टूबर को राजनीतिक दलों के अध्यक्ष और महासचिवों को दिए आदेश में कहा है कि आयोग की 9 अक्टूबर को कोविड-19 के लिए जारी एडवाइजरी का राजनीतिक दलों की सभाओं और रैलियों में पालन नहीं किया जा रहा है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सभाओं और रैलियों में कोविड गाइड लाइन का पालन कराए।
हाई कोर्ट ने मांगी सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सूची
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने शनिवार को अपने रजिस्ट्री को सांसदों-पूर्व सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की एक सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और जस्टिस सुजॉय पॉल की खंडपीठ ने यह निर्देश दिया है। सहायक सॉलिसिटर जनरल जे के जैन ने कहा है कि हाई कोर्ट ने रजिस्ट्री से दो सप्ताह के भीतर सांसद, पूर्व सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। खासकर वे मामले जिनमें स्थगन के आदेश जारी किए गए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर 2020 को सभी हाई कोर्ट से कहा था कि वे उनके यहां लंबित सांसद-विधायक से संबंधित आपराधिक मामलों को तत्काल सुनवाई के लिए उचित पीठ के समक्ष लगाएं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश अश्विनी कुमार उपाध्याय और अन्य की ओर से दायर की गई याचिका की सुनवाई पर आया था।