असम में हिमंत बिस्व सरमा को नया मुख्यमंत्री तय कर भाजपा ने दूसरे दलों से पार्टी में आने वाले नेताओं के लिए नया रास्ता खोल दिया है। पूर्वोत्तर के छोटे राज्यों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश बड़े राज्यों में भाजपा नेतृत्व मुख्यमंत्री पद के लिए अपने काडर से आने वाले या गैर कांग्रेसी पृष्ठभूमि के नेताओं को ही आगे बढ़ाता रहा है, लेकिन असम से उसकी यह हिचक टूटी है। दरअसल, पार्टी अब काडर व सामाजिक समीकरण से ज्यादा काबिलियत को अहमियत दे रही है।
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और उसके बाद अमित शाह के हाथ में पार्टी की कमान आने के बाद भाजपा में कई बड़े बदलाव सामने आए हैं। भाजपा ने बीते छह-सात साल में अपना राष्ट्रव्यापी विस्तार किया है। इस दौरान वह देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी (सदस्य संख्या के हिसाब से) बनने में सफल भी रही है। देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तक उसकी व्यापक पहुंच बनी है। इस प्रक्रिया में उसके साथ दूसरे दलों से बड़ी संख्या में आए प्रमुख नेता और कार्यकर्ता भी जुड़े हैं।
कांग्रेसी पृष्ठभूमि को लेकर टूटी हिचक
बावजूद इसके आमतौर पर जब राज्यों में नेतृत्व की बात आती थी तब पार्टी अपने खांटी काडर पर ज्यादा भरोसा करती थी। उसके बाद गैर कांग्रेसी पृष्ठभूमि को देखा जाता था। साथ ही सामाजिक समीकरणों को भी अहमियत दी जाती थी, लेकिन असम में पांच साल पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा की पहली सरकार बनवाने वाले हिमंत बिस्व सरमा को इस बार पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है। बिस्व सरमा भाजपा से किसी बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले पहले कांग्रेसी पृष्ठभूमि के नेता होंगे। हालांकि, इसके पहले भाजपा ने बड़े राज्यों में झारखंड और असम में दूसरे दल से आए नेताओं को कमान सौंपी थी। झामुमो से आए अर्जुन मुंडा झारखंड में और असम गण परिषद से आए सर्बानंद सोनोवाल असम में मुख्यमंत्री रहे हैं। साथ ही पूर्वोत्तर के छोटे राज्यों में वहां की राजनीतिक स्थितियों में भाजपा में कांग्रेस से आए नेताओं को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा है। अरुणाचल प्रदेश में तो गेगांग अपांग पूरी सरकार के साथ भाजपा के साथ आ गए थे।
पूर्वोत्तर की रणनीति में अहम है बिस्व सरमा
पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि भाजपा अब काडर से ज्यादा काबिलियत को अहमियत दे रही है। हिमंत बिस्व सरमा ने बीते पांच छह साल में साबित किया है कि वह समूचे पूर्वोत्तर के सबसे बड़े रणनीतिकार हैं और पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। यही वजह है कि भाजपा ने असम में चुनाव के पहले सर्बानंद सोनोवाल के मुख्यमंत्री होने के बाावजूद उनके चेहरे पर दांव नहीं लगाया था। तभी यह साफ हो गया था कि हिमंत बिस्व सरमा सरकार बनने पर अगले मुख्यमंत्री ही सकते हैं।
बाकी राज्यों पर भी पड़ेगा असर
भाजपा के सामने अभी कुछ और राज्यों में नेतृत्व का संकट खड़ा हो रहा है। ऐसे में उन राज्यों में दूसरे दलों से आए नेताओं के लिए भी रास्ता खुला है। उत्तराखंड में चुनाव में अब लगभग महीने भर ही बाकी है। हाल में हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी पार्टी की स्थिति ठीक नहीं है। वहां पर कांग्रेस से आए पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा समेत लगभग आधा दर्जन प्रमुख नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं। आगे चलकर उनके लिए भी रास्ता खुल सकता है। हरियाणा में भी भाजपा को देर सवेर नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ सकता है। इसके अलावा पार्टी में अन्य राज्यों में भी दूसरे दलों से प्रमुख नेता भविष्य में साथ आ सकते हैं, क्योंकि अब यह भरोसा बढ़ा है कि भाजपा के लिए काडर से ज्यादा काबिलियत महत्वपूर्ण है।
विशेष रिपोर्ट- आशुतोष पांडे