एक बच्ची तट पर बैठी थी। एक ऊंची लहर आई और ढेरों मछलियों को उसने तट पर ला पटका। मछलियों को तड़पता देख बच्ची से रहा नहीं गया। वह एक-एक मछली को उठाकर फिर से समुद्र में फेंकने लगी। तभी वहां से एक राहगीर गुजरा। बच्ची के प्रयासों को देखकर वह उसके करीब गया और बोला, ‘बेटी, ऐसा करने से भला क्या फर्क पडे़गा? पूरे तट पर हजारों मछलियां तड़प रही हैं।’ एक और मछली समुद्र में फेंकती हुई बच्ची बोली, ‘अंकल, इस एक को तो बड़ा फर्क पडे़गा।’
इतनी छोटी शुरुआत करने से भला क्या होगा? शुरुआत न करने की बहानेबाजी मन में लाना व्यर्थ है। बड़ी शुरुआत की प्रतीक्षा के बजाय छोटी शुरुआत करें, ताकि बड़ा हासिल किया जा सके। इसलिए कहते हैं, बेशक छोटी शुरुआत करें, पर करें जरूर। जब हम छोटे-छोटे कामों की कड़ियों को सिलसिलेवार पिरोकर देखते हैं, तो जान पाते हैं कि मामूली और छोटे कदम ही बड़ी सफलता की राह खोलते हैं।
अर्जेंटीना के विख्यात फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेस्सी अक्सर कहते हैं, ‘मुझे रातोंरात सफलता हासिल करने में 17 साल और 114 दिन का समय लगा।’ तय है, एक ही झटके में बुलंदी हरगिज हासिल नहीं होती। छोटे-छोटे कदम उठाते-बढ़ाते ही हम मंजिल तक पहुंचते हैं।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं, ‘कोई आपसे परफेक्ट होने की उम्मीद नहीं कर रहा है, पर क्या आप बेहतर होने की लगातार कोशिश कर रहे हैं? बस यही मायने रखता है।’ यही सच्चे कर्मयोगी की पहचान है। जाहिर है, एक नन्हे बीज में सुंदर बगीचा बनाने का दमखम होता है। तो उठें और छोटे-छोटे प्रयासों सेजीवन संवारने में जुट जाएं।
( प्रो० संदीप त्यागी)