केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन का शनिवार को सौवां दिन है और इस मौके पर किसान नेताओं ने कहा कि उनका आंदोलन खत्म नहीं होने जा रहा और वे मजबूती से बढ़ रहे हैं। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि इस लंबे आंदोलन ने एकता का संदेश दिया है और एक बार फिर किसानों को सामने लेकर आया है और देश के सियासी परिदृश्य में उनकी वापसी हुई है। बीते करीब तीन महीनों से दिल्ली की तीन सीमाओं सिंघू, टीकरी और गाजीपुर में बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से आए किसान डटे हुए हैं। इन किसानों में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान शामिल हैं।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राकेश टिकैत ने कहा कि जब तक जरूरत होगी वे प्रदर्शन जारी रखने के लिये तैयार हैं। इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहे किसान नेताओं में से एक टिकैत ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ”हम पूरी तरह तैयार हैं। जब तक सरकार हमें सुनती नहीं, हमारी मांगों को पूरा नहीं करती, हम यहां से नहीं हटेंगे।” सरकार और किसान संघों के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद दोनों पक्ष किसी समझौते पर अब तक नहीं पहुंच पाए हैं और किसानों ने तीनों कानूनों के निरस्त होने तक पीछे हटने से इनकार किया है।
सितंबर में बने इन तीनों कृषि कानूनों को केंद्र कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रहा है जिससे बिचौलिये खत्म होंगे और किसान देश में कहीं भी अपनी उपज बेच सकेंगे। दूसरी तरफ प्रदर्शनकारी किसानों ने आशंका जाहिर की है कि नए कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की सुरक्षा और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी जिससे वे बड़े कॉरपोरेट की दया पर निर्भर हो जाएंगे।
किसानों की चार में से दो मांगों- बिजली के दामों में बढ़ोतरी वापसी और पराली जलाने पर जुर्माना खत्म करने- पर जनवरी में सहमति बन गई थी लेकिन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी की कानूनी गारंटी को लेकर बात अब भी अटकी हुई है।
किसान नेताओं के मुताबिक, हालांकि शनिवार को 100 दिन पूरा कर रहे इस आंदोलन ने तात्कालिक प्रदर्शन से कहीं ज्यादा अर्जित किया है। उनका कहना है कि इसने देश भर के किसानों में एकजुटता की भावना जगाई है और खेती में महिलाओं के योगदान को मान्यता दिलाई है। इस आंदोलन ने किसानों को कैसे देश के सियासी परिदृश्य में एक बार फिर अहमियत दिलाई इस बारे में स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव कहते हैं, ”आंदोलन एक बार फिर सियासी परिदृश्य में किसानों की अहमियत को रेखांकित कर रहा है। किसान एक बार फिर नजर आ रहे हैं। इसने प्रत्येक राजनेता को एक सबक सिखाया है- किसानों से पंगा न लें।”
कार्यकर्ता-राजनेता ने ‘पीटीआई-भाषा से कहा, ”लोग किसानों को गंभीरता से नहीं लेते थे लेकिन इस आंदोलन ने यह दिखा दिया कि किसानों से टकराव महंगा पड़ सकता है।” आंदोलन में महिला किसान भी बड़ी संख्या में पहुंच रही हैं और आठ मार्च को अंतरराष्ट्री महिला दिवस पर इस आंदोलन में महिलाओं के योगदान के प्रतीक के तौर पर पुरुष प्रदर्शन स्थलों की कमान व प्रबंधन महिलाओं के हाथों में सौंपेंगे।
क्रांतिकारी किसान संघ के अवतार सिंह मेहमा ने कहा, ”मंच प्रबंधन सिर्फ महिलाओं द्वारा किया जाएगा। इसके अलावा उस दिन किसान आंदोलन के लिये प्रवक्ता भी महिलाएं ही होंगी।” आंदोलन इतने समय से चल रहा है तो इसने कुछ झटके भी झेले हैं। एक बड़ा झटका 26 जनवरी को ‘ट्रैक्टर परेड के आयोजन के दौरान हुई हिंसा और पुलिस के साथ झड़प था।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की कविता कुरुग्रंथी कहती हैं, ”26 जनवरी एक झटका है जब सभी किसानों को हिंसक ‘खालिस्तानी और बहुत कुछ के तौर पर पेश किया गया। पुलिस और सरकार ने 26 जनवरी के पहले वाली छवि को इरादतन धूमिल किया।” उन्होंने कहा, ”सरकार की तरफ से कई हमले हुए जिनमें आपूर्ति को रोका जाना और स्थानीय लोगों को प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भड़काना शामिल था।”