सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में सामाजिक समीकरण को साधने का पूरा ध्यान रखा गया है। नीतीश मंत्रिमंडल में इस बार पिछड़ा-अतिपिछड़ा कोटे के मंत्रियों का दबदबा है। सबसे अधिक भागीदारी इसी समुदाय से है। इस समुदाय से आधे यानी सात मंत्री हैं, जबकि सवर्ण समाज से चार तो दलित कोटे से तीन मंत्री बने हैं। पिछड़ा-अतिपिछड़ा कोटे में भी सबसे अधिक अतिपिछड़ा समुदाय से चार मंत्री बने हैं। अतिपिछड़ों को अधिक भागीदारी देकर सरकार ने यह साफ संदेश दिया है कि उसे इस समुदाय की अधिक चिंता है।
इस बार एनडीए को मिले जनादेश में पिछड़ों-अतिपिछड़ों की अहम भूमिका मानी जा रही है। जनादेश का फलाफल मंत्रिमंडल में भी देखने को मिला। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छोड़ जदयू, भाजपा, वीआईपी और हम कोटे से बने 14 मंत्रियों में सभी ने पिछड़ा-अतिपिछड़ा समुदाय को तवज्जो दिया है। पिछड़ा-अतिपिछड़ा समुदाय में भी अतिपिछड़ा समुदाय से देखें तो सरकार में शामिल होने वाले इस कोटे में उपमुख्यमंत्री बने तारकिशोर प्रसाद व रेणु देवी के अलावा मंत्री बने मुकेश सहनी व शीला मंडल हैं। वहीं, पिछड़ा समुदाय से आने वाले तीन मंत्रियों में बिजेन्द्र प्रसाद यादव, रामसूरत राय व मेवालाल चौधरी हैं।
एनडीए में खासकर भाजपा का कोर वोटर सवर्ण समुदाय को माना जाता है। पार्टी ने इस समुदाय की बखूबी चिंता भी की है। मंत्रिमंडल में शामिल चार सवर्ण कोटे के मंत्रियों में अकेले तीन भाजपा से हैं। इनमें भी केवल ब्राह्मण समुदाय से दो, एक भूमिहार तो एक राजपूत हैं। सवर्ण समुदाय से मंत्री बनने वालों में भाजपा कोटे से मंगल पांडेय, जीवेश कुमार और अमरेन्द्र प्रताप तो जदयू कोटे से विजय कुमार चौधरी हैं।
मंत्रिमंडल में तीन दलित चेहरों को भी शामिल होने का मौका मिला है। इसमें जदयू, हम और भाजपा कोटे से एक-एक मंत्री शामिल हैं। जदयू कोटे से अशोक चौधरी, भजापा कोटे से रामप्रीत पासवान तो हम कोटे से मंत्री बने संतोष कुमार सुमन दलित समुदाय से हैं।