भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति-2020 को मंजूरी दिए जाने के बाद 34 साल पुरानी शिक्षा नीति अब पुरानी बात हो जाएगी। स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में अब तक प्रचलित 10+2 प्रणाली को 5+3+3+4 में बदल दिया गया है। 10+2 प्रणाली जहां छह से 18 वर्ष आयु वर्ग के लिए थी, वहीं 5+3+3+4 प्रणाली तीन से 18 वर्ष आयु वर्ग के लिए होगी। इनको क्रमिक रूप से फाउंडेशनल (पांच वर्ष), प्रीपरेटरी (तीन वर्ष), मिडिल (तीन वर्ष) एवं सेकेंडरी (चार वर्ष) कहा गया है।
बच्चे के मस्तिष्क का 85% विकास छह वर्ष की आयु से पहले ही हो जाता है। शिक्षा नीति ने यह माना है कि स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं है तथा प्राथमिक विद्यालयों में लगभग पांच करोड़ बच्चे आधारभूत दक्षताएं प्राप्त नहीं कर पाए हैं। इसके लिए मिशन मोड में राष्ट्रीय फाउंडेशनल लिटरेरी न्यूमरेसी मिशन की घोषणा की गई है तथा वर्ष 2025 तक कक्षा तीन तक के समस्त विद्यार्थियों को बुनियादी साक्षरता तथा संख्यात्मक ज्ञान देने का लक्ष्य रखा गया है।
शिक्षक प्रशिक्षण का क्षेत्र अत्यधिक समस्याग्रस्त रहा है। देश में कुल 17,244 शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान हैं, जिनमें से लगभग 10,000 एकल प्रशिक्षण संस्थान हैं, जिनकी गुणवत्ता अत्यंत निम्न स्तरीय है। इन संस्थानों को जस्टिस वर्मा आयोग ने बी.एड. डिग्री बेचने वाली दुकान तक कहा था। नई शिक्षा नीति ने इस क्षेत्र में युगांतकारी निर्णय लिए हैं। वर्ष 2030 तक अध्यापक बनने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता चार वर्षीय बी.एड. इंटीग्रेटेड डिग्री ही होगी।
भारत में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और वल्लभी इत्यादि बड़े एवं बहु-विषयक विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय रहे हैं। नई शिक्षा नीति में उच्चतर शिक्षा संस्थानों को बड़े एवं विविध विषयों वाले विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में रूपांतरित करना प्रस्तावित है, जिसमें प्रत्येक में न्यूनतम 3,000 विद्यार्थी हों, इस प्रकार उच्चतर शिक्षा के विखंडन को समाप्त करना है। 2040 तक सभी उच्चतर शिक्षा संस्थानों को विविधता वाले संस्थानों में रूपांतरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा सकल नामांकन अनुपात को वर्ष 2035 तक, वर्तमान के 26.3% से बढ़ाकर 50% का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अब विद्यार्थी गणित के साथ संगीत, भौतिक विज्ञान के साथ भूगोल इत्यादि विकल्पों का भी चयन कर सकेंगे।
भारत रोजगार एवं रोजगारपरक क्षमता की दुधारी तलवार पर खड़ा है। एक ओर जहां बेरोजगारी दर 6.6 फीसदी (सितंबर, 2020) है, वहीं दूसरी ओर इंडिया स्किल रिपोर्ट-2020 के अनुसार देश में मात्र 46.21 फीसदी युवा ही रोजगारपरक क्षमताओं से युक्त हैं। मैनपावर टैलेन्ट सर्वे–2018 के अनुसार भारत में प्रतिभा कमी की दर 56 फीसदी है, जबकि चीन (13%), ब्रिटेन (19%), अमेरिका (46%), जर्मनी (51%) तथा जापान (89%) में दक्षता की कमी है। स्पष्ट है कि जैसा कौशल, कंपनियों को चाहिए, उपलब्ध नहीं है। यदि भारत के युवा वांछित दक्षता प्राप्त कर लें, तो न केवल देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं, क्योंकि वांछित दक्षताओं की कमी जापान, जर्मनी, अमेरिका में भी है।
इस दुश्चक्र से देश को निकालने के लिए शिक्षा नीति में वोकेशनल एजुकेशन को प्रभावी बनाने पर जोर दिया गया है। वोकेशनल एजुकेशन को शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल किया जाएगा। अभी तक कहीं न कहीं वोकेशनल विषयों को मुख्य धारा के अकादमिक विषयों की तुलना में कमतर समझे जाने की धारणा बनी हुई है और इसी का परिणाम है कि दक्षिण कोरिया (96%), जर्मनी (75%), अमेरिका (52%) के विद्यार्थी वोकेशनल एजुकेशन से समृद्ध हैं, जबकि भारत में यह पांच फीसदी ही है। नई नीति में वर्ष 2025 तक पचास फीसदी विद्यार्थियों को वोकेशनल एजुकेशन उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
भारत शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में जीडीपी का 0.69 फीसदी खर्च करता है, जबकि अमेरिका (2.8%), इस्राइल (4.3%), दक्षिण कोरिया (4.2%) एवं चीन (2.1%) निवेश कर रहे हैं। वर्ल्ड इंटलेक्चुअल प्रापर्टी ऑर्गनाईजेशन 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 47,000 पेटेंट दर्ज करवाए, जबकि चीन (13.82 लाख), अमेरिका (6.07 लाख) कहीं ज्यादा आगे थे। नई शिक्षा नीति ने शोध एवं नवाचार की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के गठन की अनुशंसा की है, जिसका अनुमानित बजट लगभग 50,000 करोड़ रुपये होगा।
नई शिक्षा नीति अपनी पूर्ववर्ती नीतियों से इस मायने में भी विशेष है कि इसके अनेक प्रावधानों पर भारत सरकार पहले ही काफी काम कर चुकी है। इक्कीसवीं शताब्दी भारत के समग्र उत्थान की शताब्दी होगी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इसकी सुदृढ़ आधारशिला स्थापित कर दी है।
_सुरेन्द्र कुमार ( परास्नातक, नेट स्कॉलर)