चीन अपनी चालबाजी से कभी बाज नहीं आता। अब उसने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश 11 स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है। उसने ये नाम चीनी, तिब्बती और पिनयिन भाषाओं में जारी किए हैं। ड्रैगन का ये कदम तब आया है, जब भारत ने हाल ही में सीमावर्ती राज्य अरुणचाल प्रदेश में जी20 कार्यक्रमों की शृंखला के तहत एक अहम बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में चीन शामिल नहीं हुआ था। अब कुछ दिन बाद उसने एक बार फिर भारत को उकसाने की कोशिश की है।
चीन ने तीसरी बार अरुणाचल में हमारे इलाक़ों के “नाम बदलने” का दुस्साहस किया है।
21 अप्रैल 2017 — 6 जगह
30 दिसंबर 2021 — 15 जगह
3 अप्रैल 2023 — 11 जगहअरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा।
गलवान के बाद, मोदी जी द्वारा चीन को क्लीन चिट देने का नतीजा, देश भुगत रहा है। pic.twitter.com/JTDTuCsRcY
— Mallikarjun Kharge (@kharge) April 4, 2023
अरुणाचल के मुद्दे पर अभी क्या हुआ है? क्या पहले भी नाम बदलने का प्रयास कर चुका है चीन? चीन के कदम पर भारत की प्रतिक्रिया क्या रही? हाल के वर्षों में कैसे रहे हैं दोनों देशों के रिश्ते और आखिर अरुणाचल का पूरा मसला है क्या?
अरुणाचल के मुद्दे पर अभी क्या हुआ?
चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने रविवार को अरुणाचल प्रदेश के लिए 11 स्थानों के मानकीकृत नाम जारी किए। ड्रैगन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी चीन का हिस्सा बताता है और इसे जांगनान कहता है। सरकार के नियंत्रण वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने सोमवार को खबर में कहा कि मंत्रालय ने रविवार को 11 स्थानों के ‘आधिकारिक’ नाम जारी किए हैं। इनमें दो भूमि क्षेत्र, दो रिहायशी इलाके, पांच पर्वत चोटियां और दो नदियां शामिल हैं। यहां तक कि सूची में अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर के करीब एक शहर भी शामिल है।
क्या पहले भी नाम बदलने का प्रयास कर चुका चीन?
यह पहली बार नहीं है जब चीन ने भारतीय क्षेत्रों के नाम बदलकर इन्हें अपना बताने की कोशिश की हो। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा अरुणाचल प्रदेश के लिए जारी मानकीकृत भौगोलिक नामों की यह तीसरी सूची है। इससे पहले अरुणाचल में छह स्थानों के मानकीकृत नामों का पहला बैच 2017 में जारी किया गया था। यह घोषणा 2017 में दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के कुछ दिनों बाद हुई थी। तब चीन ने तिब्बती आध्यात्मिक नेता की यात्रा पर भी आपत्ति जताई थी। वहीं, 15 स्थानों का दूसरा बैच 2021 में जारी किया गया था।
चीन के कदम पर भारत की प्रतिक्रिया क्या रही?
भारत ने अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों के नाम बदलने के चीन के हालिया कदम को सिरे से खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान में कहा, ‘हमने ऐसी रिपोर्ट देखी हैं। यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने इस तरह का प्रयास किया है। हम इसे सिरे से खारिज करते हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। मनगढ़ंत नामों को बताने का प्रयास इस वास्तविकता को नहीं बदलेगा।
हाल के वर्षों में कैसे रहे हैं दोनों देशों के रिश्ते?
पिछले कुछ वर्षों में चीन और भारत के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच डोकलाम को लेकर तनाव देखने को मिला था। पूर्वी लद्दाख में 2020 में गतिरोध देखने को मिला था। पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई। इसमें भारत के छह जवान घायल हुए, जबकि चीन के 19 से ज्यादा सैनिकों को गंभीर चोटें लगी। इसके अलावा व्यापार को लेकर भी चीन और भारत के बीच तनाव रहा है। भारत ने पिछले कई वर्षों में टिकटॉक समेत कई चीनी एप को बैन किया है।
Our response to media queries regarding the renaming of places in Arunachal Pradesh by China:https://t.co/JcMQoaTzK6 pic.twitter.com/CKBzK36H1K
— Arindam Bagchi (@MEAIndia) April 4, 2023
अरुणाचल प्रदेश में बुनियदी ढांचों के विकास पर जोर
हाल के वर्षों में चीन अक्सर उकसाने वाली कार्रवाई करता रहा है। भारत भी ड्रैगन को हर तरीके से पलटवार करता आया है। साथ ही भारत ने अरुणाचल प्रदेश में एलएसी से सटे इलाकों में, विशेष रूप से तवांग क्षेत्र में अग्रिम क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है। वहीं, पूर्वी अरुणाचल में बुनियादी ढांचा तेजी से मजबूत कर रहा है। इस बुनियादी ढांचे के विकास में सड़कों से लेकर ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट तक शामिल हैं, जिनसे देश की सीमा पर मौजूद इलाकों तक पहुंचना आसान हो जाएगा। चीन को भले ही यह खटक रहा हो, लेकिन भारत इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इससे सीमा तक पहुंच में सुधार हो रहा है। इसका लाभ नागरिकों को मिलेगा ही, देश की सैन्य क्षमताएं भी बढ़ेंगी।
रक्षा मंत्रालय व सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे इन बड़े विकास कार्यों का अहम हिस्सा है। इस पर साल 2022 में काम शुरू हुआ, इसे तेजी देने के लिए कई जगह भारी मशीनरी तैनात की गई। 2,000 किमी लंबी इस सड़क का निर्माण भूटान के निकट मार्गों से शुरू हुआ है। यह तवांग, ऊपरी सुबनसिरी, तूतिंग, मेचुका, ऊपरी सियांग, दिबांग घाटी, दसली, चगलागाम, किबिथू, डोंग से होती हुई म्यांमार सीमा के निकट विजयनगर पर पूरी होगी।
सेला टनल से घटेगी दूरी, बचेगा एक घंटे का समय
अरुणाचल में सीमा सड़क संगठन द्वारा 13,700 फुट ऊंचाई पर बनाई जा रही सेला टनल जुलाई 2023 तक पूरी होने की उम्मीद है। प्रोजेक्ट के मुख्य इंजीनियर ब्रिगेडियर रमन कुमार ने बताया कि परियोजना में सिंगल-लेन सड़क डबल हो रही हैं, सेला बाईपास के लिए दो टनल और कई हेयरपिन-बैंड यानी तीखे मोड़ भी बन रहे हैं। 475 मीटर और 1790 मीटर लंबी यह दो टनल तवांग से वेस्ट कामेंग को बांटने वाली सेला-चाब्रेला पर्वत पर बन रही हैं। इनसे दूरी नौ किमी घटेगी, जिससे करीब एक घंटे का समय भी बचेगा। पूरी होने पर सेला टनल विश्व की सबसे लंबी बाई-टनल कहलाएगी।
अरुणाचल का मसला क्या है पूरा?
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सालों से चलता आ रहा है। भारत के ऐसे कई इलाके हैं, जिन पर चीन अपना दावा करता है। इन्हीं में से एक है अरुणाचल प्रदेश, जो भारत का 24वां राज्य है और भौगोलिक दृष्टि से पूर्वोत्तर के राज्यों में यह सबसे बड़ा राज्य है। चीन कई सालों से इसके पीछे हाथ धोकर पड़ा है। असल में वो इसे अपना इलाका मानता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताता है। वैसे तो तिब्बत ने भी कई साल पहले खुद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था, लेकिन चीन इसको नहीं मानता और उस पर अपना अधिकार बताता है।
विशेष रिपोर्ट-
अजीत राय ‘विश्वास’
चीफ एडवाइजर- ELE India News