क्या भाजपा को है ‘महाराज’ से ऐतराज़ ?

0
232

मध्यप्रदेश में विधानसभा की 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की पटकथा वैसे तो ज्योतिराज सिंधिया ने ही भाजपा में जाकर लिखी थी लेकिन अब लगता है भाजपा भी इसके नफा नुकसान को समझने लगी है। भाजपा के डिजिटल रथों पर कांग्रेस से भाजपा में गए ग्वालियर घराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया गायब हैं। मुख्यमंत्री शिवराज की जनसभा में साथ नजर आने वाले सिंधिया अब वहां भी मंच पर नहीं दिखते। इतना ही नहीं भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को स्टार प्रचारकों में 10वां स्थान दिया है। यहां तक कि ग्वालियर चंबल संभाग की 16 सीटों के प्रचार में भी अब कमान मुख्यमंत्री शिवराज के कंधे पर है। पार्टी में अंदरखाने चल रही चर्चा के मुताबिक सबकुछ रणनीति के तहत ही है। पार्टी के एक नेता तो तंज भरे लहजे में कहते हैं कि वह भाजपा में आ गए हैं, लेकिन अभी भाजपाई होने में वक्त लगेगा।

क्यों मुख्य पर्दे से गायब हैं ग्वालियर के ‘महाराज’

उपचुनाव प्रचार अब चरम पर है। भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज बनाम पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का चुनावी रंग देने के लिए यह कदम उठाया है। ऐसा कांग्रेस की रणनीति की काट के लिए है। मध्यप्रदेश में भिंड के सूत्र बताते हैं कि ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के बाद से कांग्रेस ने उन्हें क्षेत्र में गद्दार के तौर पर प्रचारित करना शुरू किया। यहां तक कि उपचुनाव में भी ज्योतिरादित्य को गद्दार बताना मुख्य मुद्दा है। उनके परिवार को अंग्रेजों के जूते उठाना, झांसी की रानी को धोखा देना जैसे मुद्दे खूब चर्चा में आए। इसके अलावा कांग्रेस ने हवा दी कि सिंधिया ने जमीन घोटाले में घिरने से बचने के लिए पार्टी की पीठ में छुरा घोंपा। 

मध्यप्रदेश के राजनीतिक मामलों में सक्रिय सूत्र कहते हैं कि दरअसल ग्वालियर चंबल संभाग की 16 सीटों पर सिंधिया के साथ कांग्रेस से गए लोग ही चुनाव लड़ रहे हैं। इसे क्षेत्र की जनता भी समझ रही है। भाजपा के अंदरखाने में इसका विरोध भी है। सूत्र का कहना है कि सिंधिया के कांग्रेस में जाने से 16 विधायकों को 2018 में जिताने वाले सभी मतदाता तो भाजपाई नहीं हो गए, लेकिन इसके फेर में भाजपा में जुड़ाव रखकर वोट देने वालों को झटका जरूर लगा है। सिंधिया के मुखर होने पर पार्टी का यह पक्ष दबा रह सकता है। इसलिए पार्टी ने सबको साधने के लिए अपनी रणनीति को थोड़ा दुरुस्त किया है। अभी तो केवल राज्यसभा सांसद हैं, उनसे बड़े कद्दावर नेता हैं।

भाजपा के ही सूत्र का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर चंबल संभाग के बड़े नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। भाजपा में अभी वह केवल राज्यसभा सांसद हैं। वह पार्टी में अपने समर्थक विधायकों के साथ आए हैं, लेकिन वरिष्ठताक्रम में पार्टी के भीतर सिंधिया से बड़े तमाम नेता हैं। सूत्र का कहना है कि भाजपा नेता सिंधिया का मान-सम्मान सब भाजपा का है। हम उनका पूरा आदर करते हैं, लेकिन अपने वरिष्ठ नेताओं को भी पार्टी उचित सम्मान तो देगी। सूत्र का कहना है कि भाजपा अपनी परंपरा, नियम, कायदे के अनुरूप चल रही है। यह तो मीडिया है जो तरह-तरह के मीन-मेख निकालती है।

पार्टी से ऊपर सिंधिया को कैसे मान ले भाजपा?

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुछ प्रचार के वीडियो वायरल हो रहे हैं। एक वीडियो में वह उपचुनाव को महाराज का बता रहे हैं। वह कार्यकर्ताओं से कह भी रहे हैं कि गांव-गांव यह संदेश पहुंचा दो। चुनावी सभा में मंच से वह खुद को महाराज कह रहे हैं। भाजपा और संघ की विचारधारा से जुड़े एक सदस्य का भी मानना है कि सिंधिया को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। भोपाल के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि उन्होंने राजमाता विजयाराजे सिंधिया के दौर को भी देखा है। 

उनका कहना है कि राजमाता में भी इस तरह का गुरूर नहीं दिखाई देता था। वह कहते हैं कि आज 2020 में भाजपा बहुत बदल गई है। भाजपा का नेता, युवा नेता, कार्यकर्ता सब बदले हैं। मुझे नहीं लगता कि इसमें महाराज वाली छवि की अब कोई खास जगह है। उन्हें इस बारे में अपनी बुआ यशोधरा राजे से थोड़ा सीख लेना चाहिए। उनका कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इसी साल भाजपा में आए हैं। उन्हें अभी भाजपाई बनकर राजनीति करने में थोड़ा समय लग सकता है।

कमलनाथ अकेले काफी हैं

भाजपा की तरह ही कांग्रेस पार्टी ने भी रणनीति में क्लाइमेक्स को घोला है। वह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को शहीद मुख्यमंत्री की तरह पेश कर रही है। कमलनाथ हर जनसभा में अपनी 15 महीने की संक्षिप्त सरकार के कामकाज का जिक्र जरूर कर रहे हैं। इसमें दो महीने लोकसभा चुनाव आचार संहिता में और एक महीना अपनी सरकार बचाने की कवायद में लगाना नहीं भूलते। वह धोखे में गिराई गई सरकार का पूरा फ्लेवर देते हैं, लेकिन मंच पर राघोगढ़ के राजा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नहीं होते। जीतू पटवारी से लेकर अन्य ने प्रचार में ताकत लगा दी है। कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन दिग्विजय सिंह पर्दे पर सक्रिय नहीं हैं। जबकि सिंधिया अपने भाषण में कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह का नाम लेना नहीं भूलते। भाजपा के नेता दिग्विजय के गायब रहने पर तंज भी कस रहे हैं।

भाजपा चाहती है कि दिग्विजय संभालें मोर्चा

खास किस्म की राजनीति, विशेष बयानों के जरिए करने वाले राजा दिग्विजय सिंह के मध्यप्रदेश की सत्ता से हटने के बाद कांग्रेस को 2018 तक राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी और सत्ता के लिए इंतजार करना पड़ा। टीम कमलनाथ के सूत्र इसके पीछे थोड़ा दिग्विजय सिंह को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री के विरोधी उन्हें मिस्टर बंटाधार की भी संज्ञा दे देते हैं। भाजपा के कुछ रणनीतिकारों को भी इस संज्ञा में आनंद आता है। टीम कमलनाथ और कांग्रेस के रणनीतिकारों का भी मानना है कि उपचुनाव में दिग्विजय सिंह के पर्दे पर खुलकर मोर्चा संभालते ही नुकसान हो जाने की संभावना है। इसलिए दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रहकर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को फिर मुख्यमंत्री बनाने की डिजाइन को स्थापित करने में लगे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here