केंद्र सरकार ने नए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इसका प्रभार सौंपा गया है। इस फैसले को 2024 में होने वाले आम चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि इसके पीछे मकसद सहकारिता की हालत सुधारने और किसानों को बिचौलियों से छुटकारा दिलाना भी है। दिलचस्प बात यह है कि सहकारिता मंत्रालय बनाने का फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब देश में किसान नए बने कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे में कोआपरेटिव मिनिस्ट्री के जरिए सरकार किसानों का विश्वास जीतना चाहेगी। ऐसे में यह नई मिनिस्ट्री सरकार के लिए गेम चेंजर बन सकती है।
माना जा रहा है कि 2022 में उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष किसान आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिश करेगा। ऐसे में सहकारिता मंत्रालय का फैसला केंद्र सरकार के लिए बड़ा रोल प्ले कर सकता है। छह जुलाई को दिए वक्तव्य में कैबिनेट सचिव ने सहकारिता मंत्रालय के बारे में विस्तार से बताया। इसके मुताबिक यह मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूती देगा। इसके लिए यह प्रशासनिक, कानूनी और पॉलिसी संंबंधी सहूलियतें उपलब्ध कराएगा। इसके जरिए सहकारिता ग्रासरूट तक पहुंचेगा और संबंधित लोग इससे जुड़ सकेंगे।
गौरतलब है कि सहकारिता आंदोलन के मामले में भारत का इतिहास काफी समृद्ध है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमूल है, जिसकी स्थापना 1946 में हुई थी। अमूल की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के मुताबिक भारत में स्थानीय व्यापारियों की नीति से किसान त्रस्त आ चुके थे। गुस्साए किसान एक दिन सरदार वल्लभभाई पटेल के पास पहुंचे और उनसे समाधान मांगा। तब सरदार वल्लभभाई पटेल ने उनसे कहा कि उन्हें बिचौलियों से छुटकारा पाना चाहिए और सहकारिता समिति बनानी चाहिए। निर्माण से लेकर मार्केटिंग तक का अधिकार इस समिति के पास होना चाहिए। तभी से सहकारी समितियों का चलन शुरू हुआ। गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड इसका सबसे शानदार उदाहरण है। इस सहकारी समिति के अमूल ब्रांड की मार्केट वैल्यू 39,200 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है।
ऐसे में नए कानून बनने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों किसान और मवेशी सहकारिता आंदोलन किसानों की आय में इजाफा करेंगे। साथ ही जमीन की उत्पादकता भी बढ़ेगी और देश की जीडीपी में बढ़ोत्तरी होगी। नए कृषि कानूनों के विरोध को देखते हुए सरकार इस फॉर्मूले पर काफी समय से काम कर रही थी। वहीं अमित शाह को इस नए मंत्रालय का प्रभार देना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। अमित शाह की छवि और उनके सख्त मिजाज को देखते हुए पूरे चांसेज हैं कि सरकार 2024 चुनाव के पूर्व इस नए मंत्रालय के बल पर किसान आंदालनों को दबाने में सफल रहेगी। इसी साल बजट भाषण के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण भी कह चुकी हैं कि सरकार मल्टी-स्टेट कोआपरेटिव्स विकसित करने के लिए कमिटेड है। सरकार इन सभी सहकारी समितियों को पूरा सपोेर्ट देगी। इनके ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ के लिए मैं अलग प्रशासनिक ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव रखती हूं।