किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की नजर अब टेढ़ी होती जा रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियां अपने तरीके से आंदोलन पर नजर रखे हुए हैं। एनआईए द्वारा किसान आंदोलन से जुड़े नेता बलदेव सिंह सिरसा को पूछताछ के लिए बुलाया गया है। इसकी वजह, भारत विरोधी संगठनों द्वारा विभिन्न एनजीओ को दी गई वित्तीय मदद बताई जा रही है। आने वाले दिनों में कई दूसरी जांच एजेंसियां भी कुछ इसी तरह के खुलासे कर सकती हैं। किसान आंदोलन में जांच एजेंसियों की सक्रियता, गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने के मुद्दे पर किसान संगठनों के बीच एक राय नहीं होना और किसानों को अलग-थलग करने की रणनीति में सरकार को सफलता मिलना, ये तीन बातें ऐसी हैं जो इतने लंबे समय से चल रहे शांतिपूर्वक आंदोलन को मुश्किल में डाल सकती हैं।
अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन से भारत विरोधी संगठनों के लगातार फोन आ रहे हैं। इन संगठनों से कुछ ऐसे एनजीओ को आर्थिक मदद भी मिली है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर किसान आंदोलन से जुड़े हुए हैं। इन्हीं में ‘सिख फॉर जस्टिस’ नाम के एक संगठन के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू का नाम भी शामिल है। एनआईए द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संगठन का नाम आतंकियों की सूची में डाल रखा है। इस संगठन पर आरोप हैं कि इसके द्वारा भारत में खलिस्तान की मांग उठाने वाले संगठनों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री भी इस संबंध में बयान देते रहे हैं। अब एनआईए की पूछताछ में कुछ ठोस निकलता है तो सरकार उसे आधार बनाकर किसान आंदोलन के संगठनों पर हाथ डाल सकती है।
26 जनवरी की परेड पर एकमत नहीं किसान संगठन
दूसरा, 26 जनवरी की परेड को लेकर किसान संगठन एकमत नहीं हैं। इस बाबत कोई सर्वमान्य रणनीति नहीं बन पा रही है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के कुछ सदस्य चाहते थे कि गणतंत्र दिवस पर कानून के दायरे में रहते हुए बड़ा प्रदर्शन कर ट्रैक्टर परेड निकाली जाए। दूसरे राज्यों में परेड हो या नहीं, इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। बाद में किसान नेता दर्शनपाल ने कहा, सभी राज्यों में ट्रैक्टर परेड निकालेंगे। पंजाब से जुड़े ज्यादातर किसान संगठन अपने तरीके से इस आंदोलन को आगे बढ़ाना चाह रहे थे, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली।
पंजाब के अनेक किसान नेता इस बात से खुश नहीं है कि संगठन से जुड़े लोग खुद को टीवी पर चमका रहे हैं। यूपी के किसान नेता राकेश टिकैत की आक्रामक शैली को लेकर भी कुछ संगठन असमंजस की स्थिति में रहते हैं। उस वक्त जब दूसरे किसान संगठन ट्रैक्टर रैली को लेकर नपे-तुले बयान दे रहे थे तो राकेश टिकैत ने खुलेआम यह घोषणा कर दी कि गणतंत्र दिवस पर सब कुछ होगा। ट्रैक्टर परेड निकाली जाएगी। किसान संगठनों की आपसी फूट से सरकार को बल मिला है।
तीसरा, क्या किसान आंदोलन देश में अलग-थलग पड़ता जा रहा है, इस सवाल का जवाब दो किसान नेताओं ने दिया है। राजस्थान और हरियाणा के दो बड़े किसान नेता, जो पहले सार्वजनिक तौर पर बयान देते रहे हैं, शनिवार को उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर किसान आंदोलन से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया है। इनमें एक नेता एआईकेएससीसी से जुड़े हैं और दूसरे अपना संगठन चला रहे हैं। इनका कहना है कि किसान आंदोलन को जानबूझकर लंबा खींचा जा रहा है। इसके चलते सरकार को इस आंदोलन को अलग थलग करने का मौका मिल गया। दोनों किसान नेताओं ने खुद ही एक सवाल कर दिया।
उन्होंने कहा, किसान नेता क्यों दिल्ली की सीमा पर जमे हैं। वहां दूसरे नेताओं को आंदोलन की बागडोर देकर उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में जाना चाहिए था, मगर नहीं, उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें तो टीवी पर खुद को नेता दिखाने की पड़ी थी। इनकी गैर जिम्मेदाराना हरकतों के कारण ही आज कृषि मंत्री तोमर छाती ठोक कर यह बात कह रहे हैं कि ये आंदोलन तो ढाई प्रदेश के किसानों का है। सरकार उनके साथ बातचीत कर रही है। अगली बैठक फलां तारीख को होगी। जब शुरू से ही किसानों की एक ही मांग है कि कानूनों को वापस लो तो इस आंदोलन को एक ही जगह पर इतना लंबा क्यों खींचा जा रहा है।
किसान नेता ने कहा कि अगर आज देश के हर जिले में चाहे पचास-सौ किसान ही आंदोलन कर रहे होते तो सरकार तारीख पर तारीख देने की स्थिति में नहीं होती। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार यह बात अच्छी तरह से जान चुकी है कि ये किसान आंदोलन ढाई राज्यों से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। दूसरी जगहों से आंदोलन की खबरें न के बराबर हैं। अब आंदोलन लंबा खिंच रहा है तो जनता का सहयोग भी कम होने लगा है। सड़क बंद करने जैसे कठोर कदमों से लोग परेशान हो रहे हैं। किसान नेताओं के मुताबिक, अभी भी समय है कि सभी संगठनों को देश के दूसरे हिस्सों में जाकर आंदोलन को खड़ा करना चाहिए।