असम के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता तरुण गोगोई का 84 साल की उम्र में सोमवार को निधन हो गया। तरुण गोगोई के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया है। उन्होंने कहा, ”श्री तरुण गोगोई जी एक लोकप्रिय नेता और एक वयोवृद्ध प्रशासक थे, जिन्हें असम के साथ-साथ केंद्र में भी राजनीतिक अनुभव था। उनके निधन से दुखी हूं। दुख की इस घड़ी में मेरे विचार उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं। ओम शांति।”
Shri Tarun Gogoi Ji was a popular leader and a veteran administrator, who had years of political experience in Assam as well as the Centre. Anguished by his passing away. My thoughts are with his family and supporters in this hour of sadness. Om Shanti. pic.twitter.com/H6F6RGYyT4
— Narendra Modi (@narendramodi) November 23, 2020
छह बार सांसद और दो बार केंद्रीय मंत्री रहे तरुण गोगोई ने 2001 में प्रदेश की राजनीति में कदम रखा। उन्होंने लगातार तीन बार 2001, 2006 और 2011 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। इस दौरान हेमंत बिस्वा सरमा नंबर दो की हैसीयत में रहे। हर बाप की तरह तरुण गोगोई भी अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे और लोकसभा सांसद गौरव गोगोई को सौंपना चाहते थे। इसलिए, हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।
उग्रवाद की समस्या से जूझते असम को अवसरों की धरती में बदलने का जब भी जिक्र होगा, तो पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का नाम सबसे आगे होगा। वह गोगोई ही थे, जिनके कार्यकाल में कॉरपोरेट ने असम की धरती पर कदम रखा। लगातार पंद्रह साल तक मुख्यमंत्री रहे, प्रदेश को पहचान दिलाई। पर अपनी सरकार के नंबर दो के नंबर एक बनने की राह में बाधा बनना उन्हें भारी पड़ा और हेमंत बिस्वा सरमा को गंवाने की कीमत उन्हें अपनी सरकार गंवाकर चुकानी पड़ी।
मुख्यमंत्री के तौर पर तरुण गोगोई ने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने मौलाना बदुरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ पार्टी को कभी तरजीह नहीं दी। वर्ष 2016 में पार्टी के अंदर एक बड़ा तबका एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन की वकालत कर रहा था, पर तरुण गोगोई तैयार नहीं हुए। उनकी दलील थी कि इससे प्रदेश र्में हिंदू-मुस्लिम विभाजन बढ़ जाएगा। हालांकि इस बार कांग्रेस-यूडीएफ हाथ मिला सकते हैं।
Shri Tarun Gogoi was a true Congress leader. He devoted his life to bringing all the people and communities of Assam together.
For me, he was a great and wise teacher. I loved and respected him deeply.
I will miss him. My love and condolences to Gaurav & the family. pic.twitter.com/jTMfSyAJ6J
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 23, 2020
वह कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क रखने के साथ लोगों से भी जुड़े रहते थे। हर मुद्दे पर उनकी स्पष्ट राय होती थी। यही वजह है कि जब सीएए का मुद्दा आया तो उन्होंने 36 साल बाद वकील के तौर पर वापसी करने में देर नहीं की। वह वकील के लिबास में सुप्रीम पहुंचे और नागरिकता कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सरकार के खिलाफ पक्ष रखा।