आज कल मैं और तुम…

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तुम खामोश रहती हो
कुछ ज्यादा आज कल ,
पर भाने लगी हो मुझको
कुछ ज्यादा आज कल।

झुकी पलकें तेरी झाँकतीं
दिल की गहराइयों में कैसे!
धड़कने तेज़ हो जातीं यूँ ही
तुझे देखते ही आज कल।।

बेवजह गुस्सा करती हो तुम
कुछ ज्यादा आज कल,
गुस्से में और भी हसीन
लगती हो तुम आज कल।

वो पड़ाव पार कर चुके हैं हम
जहाँ प्यार अंधा होता था,
तेरे प्यार को समझने लगा हूँ
कुछ ज्यादा आज कल।।

आंखें तेरी घायल कर जाती
बिन बात आज कल,
आहें भरने को जी चाहता है
बिन बात आज कल ।

राख के तले दुबका बैठा हो
सुस्त ज्वाला की दहन,
फूँक दो तनिक,जिंदा कर दो
जागे अरमाँ आज कल।।

हवा की भी आदत है बुरी
छेड़ती तुझे आज कल,
चाँद से पहले सांझ सितारा
देखतीं तुझे आज कल ।

मेरी आसमाँ की चाँदनी हो तुम
इतनी इनायत रखना,
एक भी पल ना गवारा मुझको
बिन तेरे आज कल।।

वफा की उम्मीद वक्त से
करता नहीं आज कल,
ख़फ़ा हो जाये किस घड़ी
रूठ जाए किस पल ।

साथ तुम्हारी जनम जनम का
बात भी कम नहीं है,
सौ जन्म का ख्वाब जी लिया
लगता है आज कल।।

✍️ द्वारा रचित – बामन चंद्र दीक्षित

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