भारतीय राजनीति में आजकल एक नया चलन तेजी से ज़ोर पकड़ता जा रहा है वह यह है कि नेता एक दल से दुसरे दल में ऐसे शामिल हो रहे हैं जैसे मानव शरीर पर कपड़े बदलते हैं। और ऐसे नेताओं को वह दल सर आंखों पर बिठा लेता है।और उस दल के निष्ठावान एवं कर्मठ कार्यकर्ताओं पन्ना प्रमुख , बूथ अध्यक्ष, बूथ लेवल कार्यकर्ता , पोलिंग एजेंट, एवं दल के सक्रिय कार्यकर्ता अपनी सक्रिय भूमिका निभाकर निरंतर सक्रियता जारी रखकर उन राजनीतिक दलों के लिए तैयार रहते हैं परंतु चुनाव के समय प्रायः देखा गया है कि शीर्ष नेतृत्व द्वारा कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर दलबदलू नेताओं को उम्मीदवार घोषित किया जाता है। जो चुनाव हारने के बाद या तो निष्क्रिय हो जाते हैं या वह जिस दल से आते हैं उसी में घर वापसी कर लेते हैं। ऐसे में चुनाव के बाद राजनीतिक द्वैषतावश सत्तारूढ़ दल उन निष्ठावान , समर्पित , कर्मठ , बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को ही ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है।
शीर्ष नेतृत्व इन कार्यकर्ताओं को इनके हाल पर छोड़ देता है और कोई पूछ परख नहीं होती। यही कार्यकर्ता संगठन का प्रत्येक कार्य पूर्ण लगन , निष्ठा , समर्पण एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ करता है। जनमानस में यह तय होता है कि यह निष्ठावान समर्पित कार्यकर्ता राजनीतिक दल का कार्यकर्ता है। राजनीतिक बदले की हिंसा सत्ता के मद में चूर होकर की जाती है तब सर्वाधिक उत्पीड़न इन्हीं कार्यकर्ताओं का होता है जैसे हत्या , लूटमार , बलवा , आगजनी और परिवार पर जानलेवा हमला , बलात्कार एवं अन्य प्रकार की प्रताड़ना यही कार्यकर्ता सहन करते हैं। इन कार्यकर्ताओं पर हमला करने वाले लोगों के संरक्षक उनका हर प्रकार से मदद कर संरक्षण करते हैं और यह निष्ठावान समर्पित कार्यकर्ता ठगे से महसूस करते हैं। शुचिता की राजनीति करने वाले अनुशासित राजनीतिक दल में दलबदलूओं / नौकरशाहीयों को ज्यादा तवज्जो देकर उन पर अत्यधिक भरोसा किया जाता है और कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जाता है। फिर भी हर चुनाव में यही कार्यकर्ता पूर्ण निष्ठा लगन एवं मेहनत से समर्पण के साथ अपने कर्तव्य को पूर्ण करता है। आजकल नये प्रयोगों का शीर्ष नेतृत्व बहुत अधिक उपयोग कर रहे हैं। जिसके कारण नौकरशाही एवं दलबदलू नेताओं पर भरोसा करने के कारण दिल्ली कि प्रदेश सरकार आते-आते चली गई। और पश्चिम बंगाल भी इसका उदाहरण रहा है। जो दलबदलू आए थे वे तेजी से वापस अपने दलों में चले गए। संगठन में बैठे नेतृत्वकर्ता बंद कमरों में बैठकर ऐसा ही बेतुका निर्णय लेकर अपरिपक्व (40 वर्ष से कम उम्र) लोगों को संगठन के पदाधिकारी बनाकर वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर रहे हैं जिससे पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अधिकतर पदाधिकारी केवल सोशल मीडिया पर ही हैं धरातल पर इनका कोई कार्य संगठन के प्रति नहीं होता और संगठन प्रायः निष्क्रिय रहता है। ऐसे पदाधिकारियों के व्यवहार के कारण प्रायः संजिदा कार्यकर्ता अपने आप को निष्क्रिय कर लेते हैं। आजकल अपने दल का उम्मीदवार चुनाव हार भी जाता है तो एक नया चलन विरोधी दल के विजयी प्रत्याशी को एन केन प्रकारेण अपने दल में शामिल कर सत्ता हासिल कर लेना भी कार्यकर्ताओं को संगठन से दूर करने में पार्टी के नेतृत्व का योगदान है। शीर्ष नेतृत्व से अपेक्षा है कि ऐसे हर पहलू पर विचार कर संगठन को विस्तार करने की दिशा में उचित निर्णय लें। एवं समर्पित कार्यकर्ताओं की संगठन में भागीदारी सुनिश्चित करें।
वीरेंद्रसिंह चौहान
राजनीतिक “चिंतक” जावरा
मो.नं. 9575026117