मन
बहुत सिमट कर रहती थी वह।
लज्जा के मारे वह मुख उपर नही उठाती और वह उसका मुख देखने के लिए लालायित रहता।
वीर सिंह सैना में तैनात था। अभी अभी ब्याह हुआ था। वह हर पल अपनी नवोढ़ा के साथ बीताना चाहता था।
राधा बहुत शर्मिली थी और नई आई थी इसलिए थोड़ा डर भी था। सबके सामने अपने पति से बोलने में बहुत झिझकती थी।
पूरा दिन प्रतिक्षा में जाता । बहुत मुश्किल से एकांत आता जब सब गहन निशा में सो जाते।
गाँव का रहन सहन वहाँ की मर्यादा , बड़ों का आदर अभी भी पालन किया जाता है।
प्रतिक्षा तेरी
अपलक निहारे
पिया बावरे।
समय बीतता गया। वीर सिंह के जाने का समय आ गया।
राधा को अब विछोह की कल्पना से आँखो में आँसू बहते रहते।
वीर सिंह नाम से ही नहीं अपने काम से भी वीर था।
पक्का देशभक्त और जोशिला जाँबाज।
चल पड़ा अपने कर्त्तव्य पथ पर।
लौटना तुम
भारत माँ के लाल
प्रतिक्षा तेरी।
प्रेषिका-
माया मालवेंद्र बदेका
उज्जैन- मध्य प्रदेश