‘दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है। लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।’राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने बेहद भावुक अंदाज में अपना विदाई भाषण देते हुए यह शेर पढ़ा। यह शेर उन्होंने जम्मू-कश्मीर में बदले हुए हालात के बारे में पढ़ा था, पर यह उनके राजनीतिक सफर पर भी सटीक बैठता है। क्योंकि राज्यसभा में वापसी के लिए उनकी शाम लंबी हो सकती है। पार्टी के पास उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए कोई सीट नहीं है।
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के उन गिने चुने पार्टी नेताओं में है, जिन्हें गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम करने का अनुभव है। आजाद लगभग सभी प्रदेशों और केंद्र शासित राज्यों के प्रभारी रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस में वह इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर राजनीतिक दल में उनके मित्र हैं। ऐसे में पार्टी उन्हें संगठन में जिम्मेदारी सौंपकर उनके अनुभवों का लाभ ले सकती है।
कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि वह चाहकर भी गुलाम नबी आजाद को जल्द राज्यसभा नहीं भेज सकती। यूं तो गुजरात में एक मार्च को राज्यसभा की दो सीट के लिए चुनाव है, पर अलग-अलग चुनाव होने की वजह से दोनों सीट पर भाजपा की जीत तय है। केरल में अप्रैल में राज्यसभा के चुनाव हैं। पर केरल कांग्रेस किसी बाहरी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाती है। इसके साथ विधानसभा के भी चुनाव होने हैं, ऐसे में उम्मीद कम है।
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब में राज्यसभा चुनाव 2022 में हैं। ऐसे में राज्यसभा में वापसी के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ सकता है। अगर वह राज्यसभा में सदस्य के तौर पर लौटते हैं, तो भी वह नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाएंगे। क्योंकि, उनकी अनुपस्थिति में पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे, पी.चिदंबरम या आनंद शर्मा में से किसी एक को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस बारे में फैसला मार्च में किया जाएगा
गुलाम नबी आजाद को संगठन में क्या जिम्मेदारी मिलेगी, इस बारे में भी कई सवाल हैं। क्योंकि आजाद पार्टी के उन असंतुष्ट नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठन में विभिन्न स्तर पर चुनावों की मांग की थी। इससे संगठन में उनकी पकड़ कमजोर हुई है। हालांकि, पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी पत्र लिखने वाले नेताओ से चर्चा कर चुकी है, पर यह नेता अपनी मांगों पर कायम है। ऐसे में गुलाम नबी आजाद को पार्टी संगठन में वह रुतबा वापस पाने में वक्त लग सकता है।