क्या मोदी सरकार के लिए साख का सवाल बन गया है किसान आंदोलन ?

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कृषि कानूनों को लेकर किसान और सरकार के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा है। किसानों की मांग पर किसान नेताओं को केंद्र सरकार ने एक लिखित प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया और तीनों कानूनों के वापस लेने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। किसानों के कृषि कानूनों को वापस लेने पर अड़े रहने से सरकार सकते में है। सरकार का मसौदा किसानों की ओर से खारिज किए जाने से सरकार चिंतित भी है।

सरकार का मानना है कि किसानों की वाजिब मांगो पर गौर किया गया है और वह कानून में बदलाव करके उनकी चिंताओं का समाधान करने को तैयार है। ऐसी स्थिति में उनका विधेयकों को वापस लेने की मांग पर अड़ना ठीक नहीं है। सरकार का मानना है कि किसानों को यह देखना चाहिए कि उनकी चिंताओं को दूर किया जा रहा है। सरकार ने अपने लिखित प्रस्ताव में एमएसपी समेत नौ मुद्दों के समाधान का आश्वासन दिया है। यह भी कहा है कि वह खुलेमन से हर शंका पर विचार करने को तैयार है। लेकिन किसान जरा भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

सरकार का मानना है कि किसानों को भी सकारात्मक रुख अपनाना होगा। किसानो को कानूनों को वापस लेने की मांगों पर अड़े रहने की बजाय अपनी अन्य चिंताओं का समाधान सरकार से मांगना चाहिए, जिसमें जाहिर है कि सरकार देर नहीं करेगी। जानकार मानते हैं कि सरकार के लिए पूरी तरह से रोलबैक संभव नहीं होगा। क्योंकि ऐसा करने का मतलब है कि विपक्ष को कोई नया मुद्दा खड़ा करने का मौका देना। सरकार के सूत्रों का कहना है कि फिलहाल किसानों को समझाने की कोशिश जारी रहेगी। गृहमंत्री अमित शाह खुद कमान संभाल चुके हैं। मंगलवार को उन्होंने किसान नेताओं से बात की और लिखित प्रस्ताव दिया और आज कृषि मंत्री के साथ बैठक कर ताजा स्थिति की समीक्षा की है।

कुषि सुधार कानूनों को लोगों के बीच लेकर जा सकती है सरकार
इसके अलावा सरकार अपने सुधारों को लोगों के बीच ले जाने की अपनी मुहिम भी तेज कर सकती है। साथ ही कृषि सुधारों के प्रति मिल रहे किसानों एवं अन्य वर्ग के समर्थन को भी सामने लाया जाएगा। फिलहाल किसान संगठनों का रुख कड़ा है। विपक्ष इसे और धार देने में जुटा है। विदेशों में भी इस कानून की चर्चा हो रही है। ऐसे में अगले कुछ दिनों में सरकार को बहुत सोच समझकर कदम उठाने पड़ेंगे। जानकार मानते हैं कि बातचीत से हल निकालने की कोशिश ही सबसे बेहतर रास्ता होगा। वरना सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

सरकार ने साफ कर दी है मंशा- पीछे नहीं हटेगी
जानकार मानते है कि कृषि सुधारो से जुड़े कानूनों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस मुखरता से पैरवी की है उसके बाद पूरी तरह से पीछे हटना सरकार के लिए मुमकिन नहीं है। ये सरकार की साख और नाक का सवाल हो गया है। कुछ जानकार मानते हैं कि भूमि सुधार क़ानून पर भी सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े थे। उस वक्त विपक्ष लामबंद हो गया था। इसलिए ये देखना पड़ेगा कि किसानों को आगे किस तरह से समर्थन मिलता है। हालांकि एक बात महत्वपूर्ण है कि भूमि अधिग्रहण बिल पर उस वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी केंद्र सरकार के साथ नहीं था। लेकिन, इस बार आरएसएस से जुड़े किसान संगठन चाहे वो स्वदेशी जागरण मंच हो या फिर भारतीय किसान संघ कुछ सुधारों के साथ इन कानूनों को किसान के हित में बता रहे हैं।

फिलहाल किसान संगठनों का रुख कड़ा है। विपक्ष इसे और धार देने में जुटा है। विदेशों में भी इस कानून की चर्चा हो रही है। ऐसे में अगले कुछ दिनों में सरकार को बहुत सोच समझकर कदम उठाने पड़ेंगे। जानकार मानते हैं कि बातचीत से हल निकालने की कोशिश ही सबसे बेहतर रास्ता होगा। वरना सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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