केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ कई राज्यों के किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र द्वारा बनाए गए इन्हीं कानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसान ‘दिल्ली कूच’ पर निकले हैं। उन्हें दिल्ली-हरियाणा सीमा पर रोका गया तो बवाल शुरू हो गया है। किसान डटे हुए हैं और वह आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। आइये जानते हैं उन तीन कृषि कानूनों के बारे में जिनका विरोध हो रहा है-
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून , 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। ऐसा माना जा रहा है कि कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी। बता दें कि साल 1955 के इस कानून में संशोधन किया गया है।
इस कानून का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए, उनके उत्पादन, सप्लाई और कीमतों को नियंत्रित रखना है। बता दें कि समय-समय पर आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में कई चीजों को जोड़ा जाता रहा है। जैसे कि कोरोना काल में मास्क, सैनिटाइजर को आवश्यक वस्तुओं में जोड़ा गया है।
क्यों हो रहा है विरोध?
किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। नए बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण लगाएंगी। ये स्थितियां अकाल, युद्ध, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा हो सकती है।
नए कानून में उल्लेख है कि इन चीजों और कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर एक्शन लिया जाएगा। सरकार इसके लिए तब आदेश जारी करेगी जब सब्जियों और फलों की कीमत 100 फीसदी से ज्यादा हो जाएगी। या फिर खराब ना होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 फीसदी तक का इजाफा होगा।
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020
इस कानून के तहत किसान एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के बाहर भी अपने उत्पाद बेच सकता है। इस बिल में बताया गया है कि देश में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जाएगा कि जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने का आजादी होगी। प्रावधानों में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टेशन पर ख़र्च कम करने की बात कही गई हैं। नए कानून के मुताबिक किसानों या उनके खरीदारों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देना होगी। ये बिल 17 सितंबर को लोकसभा से पास कर दिया गया था।
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020
इस कानून का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलवाना है। इसके तहत कोई किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकता है, इस समझौते में फसल की कीमत, फसल की गुणवत्ता और कितनी मात्रा में और कैसे खाद का इस्तेमाल होगा जैसी बातें शामिल हैं।
कानून के मुताबिक किसान को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान करना होगा और बाकी का पैसा 30 दिन के अंदर करना होगा। इसमें यह प्रावधान भी है कि खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी व्यापारी की होगी, अगर कोई एक पक्ष समझौते को तोड़ेगा तो उस पर पेनल्टी लगाई जाएगी।
ये कानून कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता है।
विरोध के मुख्य कारण क्या हैं?
मुख्य तौर पर किसानों को दूसरे कानून पर आपत्ति है, क्योंकि एपीएमसी में किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य मिलता है, इस कानून में यह साफ नहीं किया गया है कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता है कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें।
एपीएमसी में किसानों को इस बात की राहत होती है कि उन्हें अपनी फसल के लिए धोखा नहीं मिलेगा। जबकि नए बिल में लिखा है कि कोई भी व्यापारी जिसके पास पैन कार्ड भी हो, वो किसान से फसल खरीद सकता है।
तीसरा कारण यह है कि सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वो सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें। ऐसे में वो व्यापारियों को कम कीमत पर अपनी फसल बेच सकते हैं और व्यापारी अपने पास उनकी फसल जमा कर सकते हैं। क्योंकि व्यापारी के भंडारण की सुविधा अच्छी होगी तो वो अपने हिसाब से बाजार में फसल को बेचेंगे। किसानों का कहना है कि ऐसा करने से फसल की कीमत तय करने का अधिकार बड़े व्यापारियों या कंपनियों के पास आ जाएगा और किसानों की भूमिका ना के बराबर हो जाएगी।