केंद्र सरकार और किसान यूनियनों के बीच हुई 11वें दौर की वार्ता भी बेतनीजा खत्म

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नए कृषि कानूनों को लेकर जारी घमासान को रोकने और कोई बीच का रास्ता तलाशने के लिए शुक्रवार को केंद्र सरकार और किसानों के बीच हुई 11वें दौर की वार्ता भी बेतनीजा खत्म हो गई। इस बैठक में भी मुद्दे का कोई समाधान नहीं निकल सका। अगली बैठक के लिए कोई तारीख तय नहीं हुई है। सरकार ने किसान यूनियनों को दिए गए सभी संभावित विकल्पों के बारे में बताया और उनसे कहा कि उन्हें कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर अंदरूनी चर्चा करनी चाहिए।

बैठक के दौरान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि नए कृषि कानूनों में कोई समस्या नहीं है। सरकार ने किसानों के सम्मान के लिए इन कानूनों को स्थगित रखे जाने की पेशकश की है। कृषि कानूनों को 18 महीने तक टालने के अलावा इससे बेहतर हम और कुछ नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमने अपनी तरफ से बेहतर प्रस्ताव दिया था, अगर किसानों के पास इससे अच्छा कोई प्रस्ताव है तो उसे लेकर आएं। 

तोमर ने किसान यूनियनों से साफ शब्दों में कहा कि यदि किसान तीनों कृषि कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं तो सरकार एक और बैठक के लिए तैयार है। कृषि मंत्री ने सहयोग के लिए किसान यूनियनों को धन्यवाद दिया।

बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा कि बैठक बेशक लगभग पांच घंटे तक चली हो, लेकिन दोनों पक्ष के लोग 30 मिनट से भी कम समय तक आमने-सामने बैठे। आज की बैठक में भी सभी किसानों ने तीनों कानूनों को रद्द करने और एमएसपी पर कानून बनाने की मांग को फिर दोहराया।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की प्रेस वार्ता के मुख्य अंश:
1. किसानों के फायदे के लिए संसद में कृषि सुधार विधेयकों को पारित किया गया, आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब के किसानों और कुछ अन्य राज्यों के कुछ किसानों द्वारा किया जा रहा है।
2. सरकार ने आंदोलन खत्म करने के लिए कई प्रस्ताव दिए, लेकिन जब आंदोलन की शुचिता खो जाती है तो कोई समाधान संभव नहीं होता।
3. सरकार ने हमेशा यह कहा कि वह कानूनों को निरस्त करने के अलावा अन्य विकल्पों पर विचार करने को तैयार है, हमारा प्रस्ताव किसानों और देश के हित में है।
4. हमने यूनियनों से हमारे प्रस्ताव पर शनिवार तक अपना फैसला बताने को कहा, यदि वे सहमत हैं, तो हम फिर से बैठक करेंगे।
5. कुछ बाहरी ताकतें निश्चित रूप से आंदोलन जारी रखने की कोशिश कर रही हैं; जाहिर है, वे ताकतें किसानों के हितों के खिलाफ हैं।
6. हमें आशावान रहना चाहिए; किसान यूनियनों के अंतिम फैसले को सुनने के लिए कल तक इंतजार करें।

राकेश टिकैत बोले- ट्रैक्टर रैली 26 जनवरी को ही होगी

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार की तरफ से कहा गया कि 1.5 साल की जगह 2 साल तक कृषि कानूनों को स्थगित करके चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अगली बैठक केवल तभी हो सकती है जब किसान यूनियनें सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार हों, कोई अन्य प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया। राकेश टिकैत ने कहा कि योजना के अनुसार, ट्रैक्टर रैली 26 जनवरी को होगी।

ज्ञात हो कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तरफ से बुधवार को हुई 10वें दौर की वार्ता के दौरान कानूनों के क्रियान्वयन को डेढ़ साल तक के लिए टालने का प्रस्ताव दिया गया था। इसको लेकर गुरुवार को हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में कोई सहमति नहीं बन सकी थी और सभी ने इसे एक मत से खारिज कर दिया था। सरकार की तरफ से कहा गया था कि 1.5 साल तक कानून के क्रियान्वयन को स्थगित किया जा सकता है। इस दौरान किसान यूनियन और सरकार बात करके समाधान ढूंढ सकते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक कृषि कानूनों पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को तीन कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और गतिरोध को दूर करने के लिए से चार सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया था। फिलहाल, इस कमेटी में तीन ही सदस्य हैं क्योंकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस कमेटी से अलग कर लिया था। 

58वें दिन भी किसानों का प्रदर्शन जारी

गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ में दिल्ली की सीमाओं पर लगातार 58वें दिन भी किसानों का हल्लाबोल जारी है। कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। केन्द्र सरकार इन कानूनों को जहां कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे। 

बता दें कि किसान हाल ही बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं।   

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